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Success Story: एमएनसी की बंदिशों से तंग आकर शुरू की शहद की खेती, बना ली खुद की कंपनी, आज लाखों कमा रहे, अमेजन भी हाथों हाथ ले रही इनका प्रोडक्ट

▪️ उत्तम मालवीय, बैतूल

shehad ki kheti: मल्टी नेशनल कंपनी (MNC) में काम करना अधिकांश युवाओं का ख्वाब होता है, लेकिन इन कंपनियों में बंदिशों और काम का दबाव भी कोई कम नहीं होता। इन्हीं मल्टी नेशनल कंपनियों की बंदिशों ने दो इंजीनियर दोस्तों को इतना परेशान किया कि दोनों ने नौकरी छोड़ शहद की खेती शुरू कर दी।

इसके बाद खुद की ही कम्पनी बना डाली। आज वे अपनी कंपनी का स्थानीय स्तर पर तो उत्पाद बेच ही रहे हैं, अमेजन जैसी कम्पनी तक को अपना प्रोडक्ट बेचकर लाखों कमा रहे हैं। ये कहानी मध्यप्रदेश के बैतूल निवासी एक ही नाम के दो दोस्तों की है।

आकाश वर्मा और आकाश मगरूरकर बचपन से साथ खेले, साथ पढ़े और अब एक साथ दोनो ने शहद और आचार बनाने, बेचने की कंपनी शुरू कर डाली। इंपीरियल बीज लिमिटेड नाम की उनकी कंपनी कई प्रदेशों से शहद इकट्ठा कर उसकी प्रोसेसिंग कर बेचती है। इसके अलावा आम, मिर्च, नींबू और मिक्स अचार तैयार कर बेच रही है। जल्द ही यह कम्पनी बड़ी, पापड़ जैसे घरेलू खाद्य पदार्थों के निर्माण और विक्रय में उतरने वाली है।

ऐसे हुई शहद उत्पादन की शुरुआत

दोनों आकाश ने 2018 में पूना के खादी और विलेज इंडस्ट्री कारपोरेशन से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। पहले वे खुला शहद बेचा करते थे।लेकिन 2019 में कंपनी रजिस्टर्ड कर खुद की पैकेजिंग के साथ शहद बेचना शुरू किया। आज वे हर साल 4 से 5 टन शहद का उत्पादन करते हैं। इसके लिए उन्होंने राजस्थान, हिमाचल, पंजाब प्रांत में मधुमक्खियों के डिब्बे रख दिए है।

यहां किसानों के पास रखे डिब्बों में मधुमक्खी पालकर वे शहद उत्पादन करते हैं। डिब्बों में शहद भरने के बाद इसे एकस्ट्रेक्टर की मदद से निकालकर पैकेजिंग की जाती है। जिसे आसपास के जिलों समेत अमेजन पर बेचा जाता है। वे मधुमक्खियों को ब्रीडिंग भी करवाते हैं।

जून 2020 में दोनों दोस्तों ने घर का अचार नाम से आम का अचार बनाने की शुरुआत की। जिसे साल भर में वे सात से आठ टन बेच देते हैं। आम के मौसम में आम लेकर उसे बड़ी-बड़ी टंकियों में संरक्षित कर रख दिया जाता है। जिसे आर्डर के हिसाब से तैयार कर मार्केट में भेज दिया जाता है। जिसके लिए स्थानीय और बाहरी स्तर के लिए सेल्समेन रखे गए हैं।

ऐसे शुरू किया शहद का उत्पादन

आकाश ने शहद के उत्पादन की योजना बनाकर इसे बतौर बिजनेस शुरू करने की प्लानिंग की। बाद में समझ आया कि यह बैतूल के लिए न केवल रिस्की है बल्कि उथली संभावनाओं वाला प्रोजेक्ट है। 2019 में कम अनुभव के चलते उन्होंने बैतूल में मधुमक्खियों के 15 डिब्बे रखे, लेकिन यहां फ्लोरा की संभावनाओं ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया। मक्खियां कम फ्लोरा के कारण यहां सरवाइव नहीं कर पा रही थी।

ऐसे में सरसो की खेती कर कोशिश की कि शहद का उत्पादन बढ़ जाए। लेकिन, इसमें सफलता नहीं मिली। यहां डिब्बों में कीड़े लगने से सारे डिब्बे खत्म हो गए। मधुमक्खियों के वैक्स को कीड़ों के खा लिए जाने से छत्ते नष्ट हो गए। ऐसे में फिर जानकारी जुटाई और ऐसे स्थानों की तलाश की जहां मक्खियों के लिए फ्लोरा मिल सके।

राजस्थान, हिमाचल और पंजाब को बनाया ठिकाना

बैतूल में धूमिल होती संभावनाओं के बाद आकाश वर्मा और मगरुलकर ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने मधुमक्खियों के और डिब्बे खरीदे। जिन्हें फ्लोरा वाले इलाकों में भेजने की तैयारी की। पंजाब के लुधियाना, राजस्थान के झालावाड़, सीकर और हिमाचल के कई जिलों में यह डिब्बे भेजे गए। जहां फूलों की फसल होती है। एक-एक साइट पर डेढ़ डेढ़ सौ डिब्बे रखे गए।

यह योजना काम कर गई और मधुमक्खियों को मिलने वाले फ्लोरा ने शहद उत्पादन को नई उड़ान दे दी। अब दोनों दोस्त मौसम के लिहाज से शहद उत्पादन कर रहे हैं। राजस्थान से जहां बेरी और बाजरा, सरसो की फसल का शहद मिल जाता है वहीं अजवाइन, नीलगिरी और सूरजमुखी की फसल का शहद पंजाब में जबकि मल्टी फ्लोरा का शहद हिमाचल से मिल जाता है।

एक-एक लाख रुपए की पूंजी से शुरू की कम्पनी

आकाश ने एक-एक लाख रुपए की पूंजी से यह कम्पनी शुरू की जो आज बढ़कर तीस लाख रुपए पर पहुंच गई है। इस बीच कम्पनी में काम आने वाला स्टॉक, रॉ मटेरियल, पैकेजिंग, सिलर, मिक्सर, ग्राइंडर,प्रिंटिंग जैसी मशीनें स्टाल की गई है। जबकि कम्पनी के लिए जमीन और शेड किराए पर लिया गया है।

निजी कंपनी के दबाव और बंदिशों ने बनाया उद्यमी

आकाश ने 2012 में राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय से बीई की पढ़ाई की। 2013 में सिस्का एलईडी कम्पनी में बतौर सर्विस मैनेजर ज्वाइन किया। लेकिन, उन्हें यह नौकरी रास नहीं आई। तीन साल तक सिसका में काम करने के बाद आकाश वर्मा ने यह नौकरी छोड़कर 2016 में वीवो में टेरेटरी सेल्स मैनेजर के पद पर ज्वाइनिंग दी, लेकिन यहां का सफर भी दो साल से ज्यादा नहीं चल पाया।

आकाश के मुताबिक निजी कम्पनियों की नौकरी में इरीटेशन और नौकरी का आनंद न मिलने, किसी के मातहत काम न करने की इच्छा के चलते कम्पनी शुरू करने का फैसला किया। मधुमक्खी पालन से कम्पनी बढ़ती गई। इसी आय से इन्वेस्टमेंट बढ़ाते गए। आकाश मगरुरकर बताते हैं कि एक साथ कॉलेज में पढ़ते हुए एक सोच बन गई थी कि अब कुछ करेंगे तो खुद का ही करेंगे। यही वजह रही की आटोमोबाइल की दो-दो कंपनियों में जॉब मिलने के बाद उन्होंने ज्वाईन नहीं किया।

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