Electric Cooking in India: बिजली से खाना पकाना अब एलपीजी से 37% सस्ता, तेजी से बढ़ रहा ई-कुकिंग ट्रेंड

Electric Cooking in India: भारत में ऊर्जा उपयोग को लेकर अब एक बड़ा बदलाव रसोई घर तक पहुंच रहा है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बिजली का इस्तेमाल करके खाना बनाना अब न केवल सुरक्षित और स्वच्छ विकल्प माना जा रहा है, बल्कि यह एलपीजी और पीएनजी की तुलना में जेब पर भी कम भार डालता है। यह अध्ययन IEEFA यानी इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस द्वारा तैयार किया गया है।

इस शोध के अनुसार, ई-कुकिंग के माध्यम से भोजन तैयार करने पर होने वाला खर्च घरेलू गैस से काफी कम बैठता है। आंकड़ों के मुताबिक बिजली से पकाने में औसतन एलपीजी की तुलना में लगभग 37 प्रतिशत और पीएनजी से करीब 14 प्रतिशत कम खर्च आता है। यह रिपोर्ट IEEFA की ऊर्जा विशेषज्ञ पर्वा जैन द्वारा तैयार की गई है और इसका शीर्षक ई-कुकिंग और लागत तुलना पर आधारित है।

घरेलू बजट पर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का असर

  • पिछले कुछ वर्षों में भारत के घरेलू बजट पर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का असर दिखाई देने लगा है। रिपोर्ट कहती है कि छह साल में देश का एलपीजी और एलएनजी आयात खर्च करीब 50 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, जिसका सीधा प्रभाव घरों की रसोई के बजट पर पड़ा है।
  • वर्ष 2024-25 के अनुमान के मुताबिक चार सदस्यों वाला एक सामान्य परिवार अगर पीएनजी का उपयोग करता है तो उसे साल में लगभग 6657 रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं, जबकि एलपीजी सिलेंडर बिना सब्सिडी के इस्तेमाल करने पर यह खर्च लगभग 6424 रुपये तक पहुंच सकता है।
  • पर्वा जैन का कहना है कि अगर सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो जाए तो ई-कुकिंग सबसे कम कीमत पर उपलब्ध रहने वाला विकल्प साबित होगा। उनके अनुसार, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बिजली आधारित खाना पकाने से ऊर्जा की उपलब्धता और सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
Electric Cooking in India: बिजली से खाना पकाना अब एलपीजी से 37% सस्ता, तेजी से बढ़ रहा ई-कुकिंग ट्रेंड

एलपीजी कनेक्शन तो बढ़े पर खपत में कमी

रिपोर्ट यह भी इशारा करती है कि भले ही देश में एलपीजी कनेक्शन लगभग हर परिवार तक पहुंच चुका है, लेकिन इसकी खपत में कमी दर्ज की जा रही है। लगातार बढ़ती कीमतों ने आम लोगों की खरीदी क्षमता पर असर डाला है। कई परिवार उपयोग को सीमित करते हैं या दोबारा सिलेंडर भरवाने में देरी करते हैं। बढ़ती निर्भरता आयात पर और आर्थिक कमजोरी भी इसके पीछे एक कारण बन रही है।

भारत में आज भी लगभग 40 प्रतिशत परिवार ईंधन के पारंपरिक स्रोतों जैसे लकड़ी, कोयला और गोबर का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे ठोस ईंधन घरों की हवा को खराब करते हैं और इससे स्वास्थ्य से जुड़े खतरे बढ़ते हैं। इसी वजह से महिलाओं की उत्पादकता पर भी असर पड़ता है क्योंकि उन्हें इस तरह के ईंधनों की व्यवस्था में अतिरिक्त समय देना पड़ता है।

बिजली से खाना बनाने में प्रदूषण से भी मुक्ति

बिजली से खाना बनाना न केवल लागत में राहत देता है, बल्कि यह घर के प्रदूषण को भी काफी हद तक कम करता है। इसमें ऊर्जा के सदुपयोग की क्षमता अधिक होती है और देश के आयात बिल पर निर्भरता कम हो सकती है। रिपोर्ट इसे भारत के नेट जीरो 2070 लक्ष्य की दिशा में एक व्यावहारिक कदम के रूप में देखती है। यह मॉडल बड़े पैमाने पर अपनाया गया तो भारत अपनी रसोई संबंधित ऊर्जा संरचना में तेजी से बदलाव ला सकता है और डिकार्बोनाइजेशन की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

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अभी इन कारणों से बिजली का कम उपयोग

देश में सौ प्रतिशत बिजलीकरण होने के बावजूद ई-कुकिंग की रफ्तार धीमी बताई जा रही है। अध्ययन में इसके कुछ प्रमुख कारण भी बताए गए हैं। इंडक्शन, इलेक्ट्रिक कुकर और हॉट प्लेट जैसे उपकरण कई परिवारों की पहुंच से बाहर हैं क्योंकि इनकी शुरुआती कीमत अधिक मानी जाती है। बाजार में विकल्पों की संख्या कम होने से उपभोक्ता अपनी जरूरत के अनुसार उत्पाद चुनने में असमर्थ रहते हैं।

सुझाव यह भी दिया गया है कि कई जगह बिजली की अनियमित आपूर्ति के चलते लोग इलेक्ट्रिक कुकिंग पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा आम लोगों में इस बात की जागरूकता कम है कि बिजली से खाना पकाना वास्तव में कितना सस्ता पड़ सकता है। इन सभी कारणों की वजह से ई-कुकिंग को लेकर विश्वास उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा, जितने की उम्मीद की जा रही थी।

IEEFA ने सरकार को दिए यह सुझाव

IEEFA ने नीति निर्माण के स्तर पर कुछ सुझाव भी सरकार को दिए हैं। संस्था का मानना है कि यदि ई-कुकिंग उपकरणों पर टैक्स में छूट या सब्सिडी उपलब्ध कराई जाए तो लोग इन्हें आसानी से खरीद सकेंगे। शहरों में जहां बिजली की सप्लाई अपेक्षाकृत स्थिर है, वहां पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर ई-कुकिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है। साथ ही लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए सूचना अभियान चलाने की भी जरूरत बताई गई है ताकि स्वास्थ्य और आर्थिक फायदे स्पष्ट हो सकें।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बने उपकरणों को प्राथमिकता दी जाए ताकि इनकी उपलब्धता अच्छे दाम पर हो सके और आयात पर निर्भरता घटे। राज्य सरकारों को मिलकर ऐसी योजनाएं तैयार करनी चाहिए जिनमें बिजली वितरण कंपनियां और महिला कल्याण विभाग भी शामिल हों और मिलकर इसे लागू करने में मदद करें।

महिलाओं को होगा सबसे ज्यादा लाभ

इस रिपोर्ट की लेखिका पर्वा जैन का कहना है कि ई-कुकिंग सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं है बल्कि यह ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन की दिशा में एक बड़ी पहल है। उनके अनुसार यदि इसे गंभीरता से अपनाया जाए तो महिलाओं के स्वास्थ्य, ऊर्जा उपलब्धता और जलवायु लक्ष्यों पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है। यह एक ऐसा कदम है जो देश की घरेलू रसोई को भविष्य की दिशा में आगे बढ़ा सकता है।

एलपीजी सब्सिडी के मॉडल में करें बदलाव

अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि सरकार अगर एलपीजी सब्सिडी कैसे और कहां खर्च की जा रही है, उसके मॉडल में छोटे बदलाव करे और उसमें से कुछ हिस्सा बिजली से खाना पकाने वाले उपकरणों पर सहायता के रूप में उपलब्ध कराए, तो यह कदम इस विचार को तेजी से जमीन पर उतार सकता है। इससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रसोई में उपयोग हो रही ऊर्जा के मिश्रण में बड़ा बदलाव देखा जा सकता है।

(स्रोत: Institute for Energy Economics and Financial Analysis – Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG, 27 अक्टूबर 2025)

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