Unlucky genius: बैतूल। शायद ईश्वर का गरीब और प्रतिभाओं से गहरा नाता है। यही वजह है कि ये प्रतिभाएं उन्हीं घर में जन्म लेती है, जहां निर्धनता हर तरफ बिखरी पड़ी रहती है। इतिहास को खंगालेंगे, तो इन बातों को सत्य से परे नहीं पाएंगे। नायकों की पृष्ठ भूमि में निर्धनता ही प्रमुख पात्र रही हैं। प्रतिभा के प्रतिभा बनने तक और आपके सम्मान करने लायक होने तक किस, किस दर-चौखट से होकर गुजरना पड़ता, ये प्रतिभा ही जानती है।
आज हम एक ऐसी ही प्रतिभा से आपको मिलाना चाहते हैं जो निर्धनता के कारण दम तोड़ रही है। यह स्थिति तब है, जब मंच से कहा जाता है कि खेल और खिलाड़ी के विकास में पैसे की कमी नहीं आने दी जाएगी। बहरहाल बैतूल जिले की इस प्रतिभा का नाम प्रह्लाद डहाके है। वह मूलत: भैंसदेही ब्लाक के ठेमगांव से हैं। प्रह्लाद ने सरकारी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की।
पिता किसान, केवल बरसाती फसल लेते (Unlucky genius)
उनके पिता किसान है, तीन भाई-बहन में बड़े होने के नाते पिता के साथ खेती-किसानी में सहयोग करते हैं। जमीन अच्छी नहीं होने से वे बारिश की फसलें ले पाते हैं। प्रह्लाद स्कूल-कॉलेज में खेलकूद प्रतियोगिता के दौरान दौड़ में हिस्सा लेता रहता था। एक बार स्टेट लेवल की प्रतियोगिता के दौरान उन्हें इंदौर जाने का मौका मिला।

रेस देखकर दौड़ने का जुनून सवार (Unlucky genius)
यहां पहली बार हेडल रेस देखी, इसे हिंदी में बाधा दौड़ भी कहते हैं। बस, इस रेस को देखकर प्रह्लाद में दौड़ने का जुनून सवार हो गया, वहां से लौटकर प्रह्लाद ने सबसे पहले खेत में हेडल बनाया और वहीं प्रेक्टिस शुरू कर दी। इसके बाद वो अवसर भी आया, जब मप्र एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की स्टेट चेम्पियनशिप प्रह्लाद ने 55.07 की जगह नए रिकॉर्ड 52.44 के साथ जीत ली। इस जीत ने उसके पैरों को पर दे दिए।
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हिमाचल प्रदेश में बनाया नया रिकॉर्ड (Unlucky genius)
इसके बाद प्रह्लाद ने हिमाचल में 400 हेडल रेस 48.9 सेकंड में जीत कर नया रिकॉर्ड बनाकर बैतूल का नाम पूरे भारत में रोशन कर दिया। इससे बड़ी बात ये थी, कि उसने एशियान मेडलिस्ट को इस दौड़ में हराया था। अब इस प्रतिभा की उड़ान ऊंची होने लगी थी। उसने दिल्ली में हुई प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता।

दूसरा मिल्खा सिंह बनने का था सपना (Unlucky genius)
बैतूल का यह धावक बाधा दौड़ तो जीत रहा था, लेकिन निर्धनता ने उसके पैर बेड़ियों से जकड़ दिए, क्योंकि वह अब तक घर, समाज और भैंसदेही विधायक से मिली 25 हजार की आर्थिक मदद की बदौलत ही यहां तक पहुंच सका था। ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने और दूसरा मिल्खा सिंग बनने का सपना देखने वाला यह धावक पैसों की कमी के कारण नेशनल कंपीटिशन में हिस्सा नहीं ले पा रहा है।
पैसों की कमी से नहीं जा पा रहा नेशनल गेम्स में (Unlucky genius)
प्रह्लाद पैसों की कमी के कारण नेशनल गेम्स में नहीं जा पा रहा है। बीते दिनों बैतूल की बालिकाओं के फटे जूते पहनकर फुटबाल खेलने की बात भी सामने आई थी, अब सवाल उठता है कि खेलों के लिए इतना बजट है, तो फिर इन प्रतिभाओं की भरपूर मदद क्यों नहीं हो पाती। हम शिखर पर पहुंचने वाले का सम्मान तो करते हैं, लेकिन फटे जूते का तमाशा खत्म करने की कोशिश नहीं। (Unlucky genius)
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