Salbardi Mela: (मुलताई)। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बैतूल जिले में स्थित सालबर्डी गांव शिवधाम के नाम से प्रसिद्ध है। शिवरात्रि पर आठ दिनों तक लगने वाले मेले की शुरुआत बुधवार को भगवान भोलेनाथ के पूजन के साथ की गई। इसके साथ ही गुफा में स्थित शिवलिंग के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। आठ दिनों तक पूरा क्षेत्र भगवान भोलेनाथ के जयकारों से गूंजेगा।
सालबर्डी गांव दो हिस्सों में बंटा है। आधा हिस्सा मप्र और आधा हिस्सा महाराष्ट्र की सीमा में आता है। पहाड़ी पर स्थित शिवगुफा मप्र की सीमा में स्थित है। जिले की एडिशनल एसपी कमला जोशी, थाना प्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने मेले में पहुंचकर निरीक्षण किया और भगवान भोलेनाथ का अभिषेक भी किया हैं।
इधर एसडीएम तृप्ति पटेरिया की ओर से जनपद सीईओ सहित तहसीलदार पट्टन ने आज अभिषेक कर मेले की शुरुआत की है। मेले अभी से श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु बड़ी आस्था के साथ आते हैं और दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं।

यह है गुफा का महत्व
सालबर्डी में 170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्राकृतिक गुफा को ‘भुयार’ नाम से जाना जाता है। इसमें एक शिवलिंग है। शिवलिंग के ऊपर चट्टान से निरंतर पानी की बूंद टपकती है। शिवलिंग का निरंतर जलाभिषेक करती है। पहाड़ी पर कहीं भी जलस्रोत नहीं है। इसके बाद भी चट्टान से लगातार पानी टपकता है।

दो हिस्सों में बंटा है सालबर्डी गांव
सालबर्डी गांव दो हिस्सों में बंटा है। आधा हिस्सा मप्र और आधा हिस्सा महाराष्ट्र की सीमा में आता है। पहाड़ी पर स्थित शिवगुफा मप्र की सीमा में स्थित है।
सालबर्डी में भुयार में विराजे भगवान शिव
पर्वत श्रृंखला के मध्य नदी के किनारे सीता नहानी के नाम से एक स्थान है। जहां एक बड़े पत्थर के नीचे से पानी बहता है। यह भी भक्तों की आस्था का केंद्र है।
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तप्तकुंड की यह भी विशेषता
सालबर्डी में जिस स्थान से पहाड़ी पर चढ़ने की शुरुआत होती है, उसी स्थान पर तप्तकुंड है। इस कुंड का जल सदैव गर्म रहता है। मान्यता है इस जल से स्नान करने से शरीर के त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं।
बैतूल से 120, मुलताई से 60 किमी दूर है सालबर्डी
बैतूल जिला मुख्यालय से 120 किमी दूर और मुलताई से 60 किमी दूर सालबर्डी स्थित है। मुलताई से दक्षिण की ओर वरुड़ से अमरावती रोड पर ग्राम दापोरी होते हुए सालबर्डी तक पहुंच सकते हैं।
यहां स्थित है पांडव कचहरी
सालबर्डी में माडू नदी की एक ओर शिवगुफा है, दूसरी ओर पहाड़ी पर पांडव कचहरी नामक प्राचीन स्थल है। ऐसी किवदंती है वनवास के दौरान पांडव ने यहां रुके थे। यहां पत्थरों का कक्ष बना है। दीवारों पर मूर्तियां बनी हैं।
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