
(लेखक प्रशासनिक उत्तरदायित्व पर सक्रिय टिप्पणीकार हैं)
Rule 14(ii) in Indian Railways: भारतीय रेल देश की सबसे बड़ी और सबसे अनुशासित सेवा प्रणाली है। लाखों कर्मचारियों के बीच कार्य का ऐसा तालमेल और जिम्मेदारी शायद किसी और सरकारी तंत्र में देखने को मिले। रेलवे में अनुशासन केवल नीतिगत शब्द नहीं, बल्कि दैनिक जीवन का हिस्सा होने का एक कारण यह भी है कि रेलवे में सबसे कठोर अनुशासन नियमों में से एक Rule 14(ii) लागू है।
रेल कर्मचारी (अनुशासन एवं अपील ) नियम, 1968 का यह प्रावधान प्रशासन को यह अधिकार देता है कि वह किसी कर्मचारी को बिना विभागीय जांच के सीधे दंडित कर सकता है या बर्खास्त कर सकता है। रेल अधिकारी यदि संतुष्ट हो जाए कि नियमित जांच “व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।” अर्थात् यदि किसी कर्मचारी का व्यवहार ऐसा हो कि जांच बाधित हो रही है या गवाह भयभीत हैं, तो प्रशासन बिना सुनवाई के भी कार्रवाई कर सकता है।
हजारों कर्मचारी किये गए थे बर्खास्त
इसी नियम के आधार पर 1974 की रेल हड़ताल के दौरान हज़ारों रेल कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया था। हालाँकि कई बार इस नियम के दुरुपयोग की खबरें भी सामने आती रहती हैं। कुछ माह पूर्व एक रेल कर्मचारी को केवल इस बात पर नियम 14(ii) का नोटिस जारी कर दिया गया क्योंकि उसने स्थानांतरण आदेश पर तत्काल अमल नहीं किया था।

ब्रिटिश काल से जुड़ी है इसकी जड़ें
इस नियम की जड़ें ब्रिटिश काल में हैं। अंग्रेज़ों ने भारतीय रेल की स्थापना सैन्य एवं साम्राज्यिक उद्देश्यों से की थी जो सेना, हथियार, और कोयले जैसे संसाधनों के परिवहन की सुनिश्चितता से जुड़ा था। उन्हें केवल आदेशपालक कर्मचारी चाहिए थे। इसलिए रेलवे में “कठोर अनुशासन” को सर्वोपरि रखा गया। यहाँ प्रश्न करने का नहीं, आदेश मानने का वातावरण था।
लोकतांत्रिक न्याय भावना से नहीं खाता मेल
लेकिन स्वतंत्र भारत में, जहाँ रेलवे अब जनता की सेवा के लिए कार्य करता है, यह औपनिवेशिक अनुशासन आज लोकतांत्रिक न्याय भावना से मेल नहीं खाता। फिर भी, सरकार इसे अब भी आवश्यक मानती है। यदि यह सच है, तो फिर सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि ऐसा अनुशासन केवल रेलवे में ही क्यों लागू है? अन्य सरकारी विभागों में क्यों नहीं, जहां अनुशासनहीनता एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला है और विधायिका और देश की जनता को इसका भुगतान करना पड़ रहा है।
रोज सामने आते भ्रष्टाचार के मामले
भारत में हर कुछ महीनों में ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जहाँ सरकारी तंत्र की लापरवाही, भ्रष्टाचार और असंवेदनशीलता से जनता को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जैसे खराब कफ सिरप के कारण बच्चों की मौतें, जो केवल कंपनियों की गलती नहीं, बल्कि नियामक संस्थाओं की विफल निगरानी का परिणाम थी, भृष्ट डिज़ाइनर, इंजीनियर, ठेकेदार और निरीक्षण अधिकारी जिनके कारण करोड़ों रुपये के पुल और सरकारी इमारतें कुछ ही महीनों में ढह जाती हैं, पेपर लीक, भर्ती घोटाले, फर्जी प्रमाणपत्रों से भरी नियुक्तियाँ।
यह प्रशासनिक लापरवाही नहीं तो और क्या है। और ऊपर से टालमटोल रवैया, सामंती सोच, और कई बार अपराधियों से मिलीभगत। यह सब जो सार्वजनिक तंत्र को खोखला कर रहे हैं। इन सबके बीच शायद ही किसी अधिकारी को विभागीय जांच या त्वरित अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। महीनों और वर्षों तक जांचें लटकती रहती हैं, फाइलें दबाई जाती हैं, और जनता का विश्वास धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है।
रेलवे में अनुशासन, दूसरों में उदारता
भारतीय रेल में एक मामूली अनुशासनहीनता जैसे किसी अधिकारी से कठोर शब्द बोल देना, या कार्य में विलंब भी बड़ी कार्रवाई का कारण बन जाता है, वहीं किसी पुल के गिरने से दर्जनों जानें चली जाती हैं, या जहाँ करोड़ों का सार्वजनिक धन भ्रष्टाचार में समा जाता है, वहाँ नियम 14(ii) जैसा कठोर प्रावधान लागू क्यों नहीं?
यदि रेलवे में “अनुशासन बनाए रखने के लिए” नियम 14(ii) आवश्यक है, तो इस जैसे नियम समान रूप से उन सभी विभागों में भी लागू होना चाहिए जहाँ भ्रष्टाचार और लापरवाही से देश और समाज को क्षति पहुँच रही है। चाहे वह स्वास्थ्य विभाग हो, निर्माण विभाग, शिक्षा विभाग, पुलिस, या प्रशासनिक सेवा।
अनुशासन का वास्तविक अर्थ
अनुशासन का अर्थ भय पैदा करना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का बोध कराना है। रेलवे के कर्मचारी हर परिस्थिति में काम करते हैं, बारिश, ठंड, त्यौहार, रात्रि-काल और एक छोटी भूल पर भी उनके विरुद्ध नियम 14(ii) लागू हो सकता है। जबकि अन्य विभागों में महीनों तक “निलंबन के बाद बहाली” और “चर्चा में दफन फाइलें” होती रहती हैं।
समय आ गया है कि यह विरोधाभास अब समाप्त होना चाहिए। यदि सरकार मानती है कि रेलवे का नियम 14(ii) एक प्रभावी और आवश्यक अनुशासनिक प्रावधान है, तो इसे केवल रेलवे तक सीमित रखना अन्याय और असंतुलन है।
समान अनुशासन, समान उत्तरदायित्व
आज आवश्यकता है कि केंद्र सरकार नियम 14(ii) जैसी व्यवस्था को सभी केंद्रीय और राज्य सेवाओं के अधिकारियों और कर्मचारियों पर एक समान अनुशासनिक नीति के रूप में लागू करे। जनता को नुकसान केवल ट्रेन के विलंब से नहीं होता, बल्कि उन पुलों, अस्पतालों, दवाओं और योजनाओं से भी होता है जिनमें अधिकारीयों की आपराधिक लापरवाही और भ्रष्टाचार छिपा होता है। जब रेलवे का स्टेशन मास्टर, लोको पायलट या गार्ड एक क्षणिक गलती के लिए भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है, तो एक भ्रष्ट इंजीनियर, निष्क्रिय अधिकारी या मिलीभगत करने वाला अफसर “जांच लंबित” जैसे बचाव का बहाना क्यों पाए।
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पूरे सरकारी ढांचे में लागू हों यह नियम
भारतीय रेल ने अनुशासन को एक जीवनशैली बनाया है परंतु देश के अन्य विभागों में यही अनुशासन “कठोरता” कहकर टाल दिया जाता है। अब समय है कि नियम 14(ii) को रेलवे की परिधि से निकालकर पूरे सरकारी ढांचे में लागू करने पर विचार हो, क्योंकि जब तक अनुशासन और उत्तरदायित्व सभी पर समान रूप से लागू नहीं होंगे, तब तक भ्रष्टाचार, लापरवाही और असंवेदनशीलता से जनता को राहत नहीं मिलेगी।
अनुशासन से मजबूत होता है सिस्टम
रेलवे ने यह सिद्ध किया है कि कठोर अनुशासन से प्रणाली ढहती नहीं, बल्कि मज़बूत होती है। अब केंद्र और राज्य सरकारों की प्रशासनिक व्यवस्था को भी यही सबक सीखने और सिखाने की आवश्यकता है कि अनुशासन सबके लिए समान है चाहे वह किसी भी स्तर का अधिकारी या कर्मचारी क्यों ना हो। और तभी ‘जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए’ बने शासन में देश की जनता सम्मान और सुकून से जी सकेगी।
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