▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
Nagchandreshwar Mandir : इस वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी 21 अगस्त 2023 को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस वर्ष नाग पंचमी के दिन सावन सोमवार का भी अद्भुत संयोग मिल रहा है। श्रावण मास के सोमवार में उज्जैन में बाबा महाकाल की भव्य सवारी भी निकलती है।
बाबा महाकाल राजसी ठाठ बाट के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। सवारी की शुरुआत में शामिल पुलिस के बैंड और जवानों द्वारा बाबा महाकाल को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। बाबा की एक झलक पाने के लिए लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर जाता है। शाम 4 बजे बाबा प्रजा का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं। सवारी प्रमुख मार्गों से होती हुई क्षिप्रा नदी पहुंचती है। शिप्रा नदी के राम घाट पर जलाभिषेक के बाद सवारी पुनः महाकाल मंदिर के लिए रवाना होती है।
सनातन धर्म में इस दिन भगवान शिव जी के साथ सर्पों की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म में नाग पूजनीय माने गए हैं। वे जहां भगवान शिव के गले में विराजते हैं तो शेषनाग पर भगवान विष्णु शयन करते हैं। वैसे तो जगह-जगह नागदेवता के मंदिर हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में नागदेवता का एक ऐसा मंदिर भी हैं जिसके पट साल भर में मात्र एक बार खुलते हैं और उसी दिन भर यहां दर्शन किए जा सकते हैं। आप में से अधिकांश पाठक इस बारे में नहीं जानते होंगे। तो आइए जानते हैं नाग देवता के उस मंदिर के बारे में जो वर्ष में सिर्फ एक बार खुलता है।
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नागचंद्रेश्वर मंदिर की रोचक जानकारी
विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग में से एक महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर मौजूद है नागचंद्रेश्वर मंदिर। ये मंदिर भक्तों के लिए वर्ष में सिर्फ नागपंचमी के दिन 24 घंटे के लिए ही खुलता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां फन फैलाए नाग की एक अद्भुत प्रतिमा है जिस पर शिवजी और मां पार्वती बैठे हैं।
मान्यता है कि यहां नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। ग्रंथों के अनुसार नाग देवता की ये प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। दावा है कि उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। वैसे तो नाग शैय्या पर विष्णु भगवान विराजमान होते हैं, लेकिन इस दुर्लभ दसमुखी सर्प प्रतिमा पर भगवान शिव देवी पार्वती संग बैठे हैं।
वर्षभर क्यों बंद रहता है नागचंद्रेश्वर मंदिर
पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्पराज तक्षक ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया था। सर्पों के राजा तक्षक की तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया था। उसके बाद से तक्षक राजा, भोलेनाथ की शरण में वास करने लगे। नागराज की महाकाल वन में वास करने से पूर्व मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। यही वजह है कि इस मंदिर के पट सिर्फ वर्ष में एक बार खुलते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार ये मंदिर बंद रहता है।
मंदिर में मौजूद हैं नागराज तक्षक
मान्यताओं के अनुसार, नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में मौजूद हैं। इस वजह से केवल नागपंचमी के दिन मंदिर को खोलकर नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही कई मायनों में नागचंद्रेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए खास है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि ऐसी प्रतिमा दुनिया में और कहीं नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था।
शैय्या पर विराजमान हैं नागदेवता
नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु की जगह शंकर भगवान सांप की शैय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी।
वरदान के रूप में दिया था अमरत्व
सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन, महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।
राजा भोज ने कराया था निर्माण
इस प्राचीन मंदिर का निर्माण राजा भोज ने 1050 ई. के आसपास कराया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की यह लालसा होती है कि नागराज पर विराजे भगवान शंकर का एक बार दर्शन हो जाए। नागपंचमी के दिन यहां लाखों भक्त आते हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता (Nagchandreshwar Mandir)
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन, महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।
यहां दर्शन से मिलती है सभी सर्प दोष से मुक्ति
इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।
20 अगस्त की रात 12 बजे खुलेंगे पट
महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरिजी महाराज के अनुसार वर्ष में एक बार खुलने वाले श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट 20 अगस्त 2023 रविवार की रात्रि 12 बजे शासकीय पूजा अर्चना के बाद खोले जाएंगे। जो कि 21 अगस्त की रात 12 बजे तक कुल 24 घंटे खुले रहेंगे।
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महाकाल व नागचंद्रेश्वर दर्शन के लिए अलग-अलग व्यवस्था
मंदिर प्रशासन की जानकारी के अनुसार नागपंचमी पर महाकाल व नागचंद्रेश्वर दर्शन के लिए अलग-अलग व्यवस्था रहेगी। भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को भील धर्मशाला से गंगा गार्डन होते हुए हरसिद्धि चौराहा, बड़ा गणेश के सामने से मंदिर के चार व पांच नंबर गेट से विश्रामधाम पुल से प्रवेश मिलेगा। वहीं भगवान महाकाल के दर्शन हेतु भक्त चारधाम मंदिर के सामने त्रिवेणी संग्रहालय से महाकाल महालोक होते हुए मानसरोवर फैसिलिटी सेंटर से परिसर में होते हुए गणेश व कार्तिकेय मंडप में प्रवेश करेंगे।