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Navratra And Ayurveda: नवदुर्गे का है आयुर्वेद से संबंध, देखें क्या है इनका दिलचस्प जुड़ाव

Navratra And Ayurveda: Navdurga is related to Ayurveda, see what is its interesting connection.

Navratra And Ayurveda: (नई दिल्ली)। हिन्दुओं की आस्था और विश्वास का एक पवित्र पर्व के रूप में जाना जाने वाला नवरात्रि त्यौहार पुराने समय से आयुर्वेद के साथ एक घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये हुए है। आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा ने माँ दुर्गा की नौ मूर्तियों के साथ आयुर्वेदा के संबधों को यहाँ विस्तार से बताया है। तो आइये जानते हैं क्या है इनका आपस में सम्बन्ध…

प्रथम शैलपुत्री (हरड़) (Navratra And Ayurveda)

देवी दुर्गा के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। और इनका एक रूप हिमावती भी कहा जाता है जो हरड़ का दूसरा नाम भी है। इसकी तासीर गर्म होती है और यह कई बीमारियों में औषधि का काम करता है। खासतौर से पेट की समस्या या अल्सर में। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।

ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)

देवी के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। यह वाणी को मधुर करने और स्मरण शक्ति बढ़ाने में कारगर औषधि है। ब्राह्मी में पाया जाने वाला एंटीऑक्सीडेंट गुण इसे कैंसर से लड़ने में मदद करता है। इसे सरस्वती भी कहा जाता है। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर पाचन और मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है।

चन्द्रघण्टा (चन्दुसूर) (Navratra And Ayurveda)

देवी के तीसरे स्वरुप को चंद्रघंटा कहा जाता है जिसका सम्बन्ध चन्दसुर औषधि से है। यह मनुष्य की काम चेतना को बढ़ाता है और ऊर्जा प्रदान करता है साथ ही प्रसूति के समय महिलाओं के स्तन में दूध की मात्रा बढ़ाने में भी सहायक है। बच्चों के कद बढ़ाने के लिए और वजन काम करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

कूष्माण्डा (पेठा)

देवी के चौथे मूर्ति को कुष्मांडा कहते हैं जो कुम्हड़ा या पेठा से सम्बंधित है। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर ह्रदय और मस्तिष्क के रोगों से लड़ने में सहायता मिलती है। जिन लोगों की मानसिक स्थिति कमजोर होती है उनके लिए यह अमृत के सामान है। यह शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी पूरा करता है।

स्कन्दमाता (अलसी) (Navratra And Ayurveda)

देवी का पंचम स्वरुप स्कन्दमाता के नाम से प्रसिद्ध है और इसका सम्बन्ध अलसी नमक औषधि से है। एंटीऑक्सीडेंट युक्त होने के कारण यह वात, पित्त, कफ सबकी नाशक है।

अलसी में विटामिन बी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, प्रोटीन, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है। इसलिए यह एनीमिया, जोड़ों के दर्द, तनाव, मोटापा घटाने में भी फायदेमंद सिद्ध होता है।

कात्यायनी (मोइया)देवी

के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं और इनका सम्बन्ध मोइया से है। इस औषधि का प्रयोग गले रोग, कफ और पित्त को समाप्त करने के लिए किया जाता है। साथ ही इसकी मदद से कैंसर का खतरा भी कम किया जा सकता है। आयुर्वेदा में इसे अम्बा, अम्बालिका और मरीचि नामों से भी जाना जाता है।

कालरात्रि (नागदौन)

देवी के सातवें स्वरुप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है और यह नागदौन नमक औषधि से सम्बन्धित है। यह मन एवं मस्तिष्क के सभी विकारों को नष्ट करने वाली औषधि है। इसके सेवन से ब्रेन की बीमारी जैसे अल्जाइमर, ट्यूमर आदि से निजात पाया जा सकता है। सुबह काली मिर्च के साथ इसकी 2-3 पत्तियों का सेवन करने से पाइल्स में फायदेमंद रहता है।

महागौरी (तुलसी)

माँ दुर्गा के आठवें रूप को महागौरी के नाम से जाना जाता है जिसका सम्बन्ध तुलसी से है। तुलसी के लाभकारी गुण किसी से छुपा हुआ नहीं है। तुलसी के नियमित सेवन से खून साफ होता है और खांसी, ह्रदय रोग, कैंसर आदि रोगों का खतरा भी काम हो जाता है।

सिद्धिदात्री (शतावरी)

देवी दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। इसमें एंटीइंफ्फ्लमेट्री, एंटीऑक्सीडेंट और घुलनशील फाइबर पाया जाता है इसलिए नियमित रूप से इसका सेवन कारन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह स्मरण शक्ति को बढ़ाता है और रक्त विकारों को दूर करने में भी मदद करता है।

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