Free Funeral Wood Support: अनूठा है इस गांव का सहयोग, शवदाह के लिए खुद हो जाती लकड़ियों की व्यवस्था

लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल) (Free Funeral Wood Support)। मृत्यु जीवन का अंतिम और अटल सत्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल सोलह संस्कार होते हैं। इनमें मृत्यु आखिरी यानी सोलहवां संस्कार होता है।

हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद मृतक शरीर का दाह संस्कार करने में लकड़ी का ही सबसे अधिक उपयोग होता है। कई गरीब परिवार ऐसे भी होते हैं जो कि अपने प्रियजन को खाने के गम के बीच यह सोचकर चिंतित हो जाते हैं कि शवदाह के लिए लकड़ी की व्यवस्था कैसे और कहां से करेंगे।

छोटे से गांव ने की बड़ी शुरूआत (Free Funeral Wood Support)

गरीब परिवारों की इसी चिंता को दूर करने के लिए मध्यप्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय के करीब स्थित छोटे से ग्राम मलकापुर में एक बड़ी शुरूआत हुई थी। बैतूल से 7 किमी दूर बसे मलकापुर ग्राम में अंत्येष्टि संस्कार के लिए दु:खी परिजनों का प्रत्यक्ष सहयोग कर जिले व देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।

15 वर्षों से चल रहा यह क्रम (Free Funeral Wood Support)

ग्राम के लिंबाजी बाबा मंडल के नवयुवकों ने तकरीबन 15 वर्ष पहले अंत्येष्टि संस्कार के लिए ग्राम से लकड़ियों को एकत्रित करना शुरू किया था। इस पहल से गाँव के किसी भी घर में गमी हो तो घरवालों को लकड़ी की चिन्ता नहीं रहती।

मंडल के सदस्य करते लकड़ी जमा (Free Funeral Wood Support)

मलकापुर के लिंबाजी बाबा नवयुवक मंडल के युवा सदस्य किसी की मृत्यु होने पर स्वयं अपने ट्रैक्टर से निकल पड़ते हैं। ग्रामवासी एक लकड़ी या कंडा ट्राली में डाल देते हैं। यही नवयुवक मुन्नालाल विश्वकर्मा, बसंत हजारे और नितेश मेहतो के मार्गदर्शन में श्मशान घाट पर लकड़ियाँ जमा भी देते हैं।

देश का हर गाँव कर सकता है अनुसरण (Free Funeral Wood Support)

देश का हर गाँव इस सुप्रथा का अनुसरण कर दु:खी मानव समाज को सहयोग कर सकता है। नगर व शहर में लकड़ी-कंडे नहीं होते, इसलिए एक नारियल, कपूरबट्टी या अगरबत्ती लेकर श्मशान में आकर दु:खी परिजनों का सहयोग कर सकते हंै। अगरबत्ती का उपयोग पंच लकड़ी के रूप किया जा सकता है।

हरे-भरे श्मशान घाट में होता अंतिम संस्कार (Free Funeral Wood Support)

माचना नदी के किनारे बसे मलकपुर ग्राम के श्मशान घाट को कोरोना काल में लिंबाजी बाबा मंडल के नवयुवकों ने वृक्षारोपण कर सुंदर बनाने का बीड़ा उठाया था। यहाँ ग्रामवासियों ने अपने परिजनों की स्मृति में लगाए बरगद, पीपल, नीम, गुलमोहर, बेलपत्र, शमी, आम, गूलर, लक्ष्मीतरु, जामुन और करंजी आदि के वृक्ष अब बड़े और छायादार हो चुके है।

यह सुविधाएं भी कराई गईं उपलब्ध (Free Funeral Wood Support)

ग्राम के सेवानिवृत शिक्षक रमेश वर्मा द्वारा अपने माता-पिता की स्मृति में यहां शव विश्राम स्थल बनवाया तथा गोंडू हजारे द्वारा यहां वर्षा एवं धूप से बचने हेतु एक कमरे का निर्माण कराया है। बैठक व्यवस्था के लिए ग्राम के संत हजारे, राकेश महतो, भद्दू पाठेकर ने अपने पूर्वजों की स्मृति में एवं कुर्मी क्षत्रिय समाज ग्राम इकाई मलकापुर ने और ग्राम की किसान समिति ने भी यहाँ बैठने के लिए बेंच लगाई गई है।

पेड़ों की सुरक्षा के लिए फेंसिंग (Free Funeral Wood Support)

पेड़ों की सुरक्षा के लिए विधायक निधि से तार फेंसिंग हुई है। परिसर के तालाब में बारिश का लाखों लीटर पानी भी जमा होता है। यहाँ पर दाह संस्कार में आए लोग हरियाली के बीच बैठकर सुकून के दो पल भी तलाशते हैं। माचना नदी के किनारे का यह मुक्तिधाम अब अपनी सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध हो चुका है।

सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण (Free Funeral Wood Support)

समाज में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा निर्धारित ‘पंच परिवर्तनÓ में सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण, जातिगत भेदभाव ऊंच-नीच एवं अमीरी-गरीबी से परे ग्राम में सामाजिक सौहार्द्र विद्यमान है। पंडित श्रीकांत धामने के अनुसार समरसता का अर्थ है सभी को अपने समान समझना। सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है।

इस कुप्रथा को समाप्त करने के प्रयास (Free Funeral Wood Support)

सामाजिक कार्यकर्ता अविनाश देशमुख कहते हैं कि मैं स्वयं मृतक देह पर नए कपड़े नहीं ओढ़ाता हूं। इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए अन्य लोगों को भी जागरूक करता हूँ।
पर्यावरण के प्रति सतत चिंतक रमेश वर्मा मलकापुर के अनुसार मृतक परिवार के शुभचिंतक अपने साथ कपड़ों की जगह घी-रार, कपूर, नारियल या हवन पुड़ा लाएं, ताकि इन समिधाओं का उपयोग पंच लकड़ी के रूप में किया जा सके।

मंडल के इन सदस्यों का रहता सहयोग (Free Funeral Wood Support)

मृत्यु संस्कार में शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए बांस की अर्थी बनाने से लेकर ट्रैक्टर से लकड़ी पहुंचाने तक का कार्य गाँव के बब्बर पटेल, पुष्पराज चौधरी, दीपक महतो, जितेंद्र वर्मा, काशीनाथ मालवी, मन्ना हजारे, लतेश महतो, मनीष चौधरी, नवनीत महतो, मनीष परिहार, मोहित पटेल, चंकी चौधरी, शिवम पटेल, लखन आदि का रहता है। वहीं किसी की मृत्यु होने पर सोशल मीडिया के माध्यम से ग्रामवासियों तक संदेश पहुंचाने में प्रेमकांत वर्मा का सहयोग रहता है।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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