Check bounce : चैक बाउंस के मामलों में न करें ऐसी गलती, यह सावधानी बरतना जरुरी

Check bounce : चैक बाउंस के मामलों में न करें ऐसी गलती, यह सावधानी बरतना जरुरी

आरोपी के पास दस्तावेज है तो बचाव संभव हैं, अन्यथा दोषसिद्धि तय

Check bounce : चैक बाउंस के मामलों में न करें ऐसी गलती, यह सावधानी बरतना जरुरी
अधिवक्ता भरत सेन

⊗अधिवक्ता भरत सेन, बैतूल⊗

Check bounce : अवैध साहूकारी का कारोबार एक छोटे गांव, शहर से लेकर महानगर तक चलता हैं। बैंक, फायनेंस कंपनी और को-ऑपरेटिव सोसाइटी हस्ताक्षर युक्त चैक लेकर ऋण देते हैं। कर्ज की राशि पूरी कभी नहीं देते हैं। कर्ज की कुछ राशि पहले ही काट लेते हैं या कर्ज की कुछ राशि की एफडी करके रख लेते हैं। लेकिन मासिक किश्तों का निर्धारण संपूर्ण ऋण राशि पर करते हैं।

कर्जदार से मासिक ईएमआई अदा करने में चूक होती हैं, तीन लगातार किश्तें अदा नहीं करने पर ऋण खाता एनपीए हो जाता हैं। कर्ज देने वाली वित्तीय संस्थाएं ऋण राशि की सुरक्षा बतौर दिए गए चैक पर नाम, रकम और दिनांक लिखकर भुगतान के लिए पेश कर देती हैं जो कि बांउस हो जाता हैं। वकील का मांग सूचना पत्र आता हैं जिसमें चैक राशि की मांग की जाती हैं। ज्यादातर कर्जदार जवाब नहीं देते हैं जो कि आगे जाकर घातक हो जाता हैं। इसके बाद अदालत में वकील मुकदमा पेश कर देता हैं।

चैक बाउंस मामले में वकील का चयन महत्वपूर्ण हैं, अन्य सिविल या क्रिमिनल मामलों की तरह चैक बांउस मामलों में पैरवी नहीं की जाती हैं। इसलिए चैक बांउस के मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने में अभ्यस्त वकील की खोज करना चाहिए। चैक बांउस का विशेषज्ञ अधिवक्ता आपको बता सकता हैं कि आपके लिए उचित बचाव क्या हैं?

अक्सर यह देखने में आता हैं कि परिवादी के लिए पैरवी करने वाले वकील को नियुक्त कर दिया जाता हैं। वह जमानत करवाता हैं ओर चैक का पैसा जमा करने के लिए आरोपी को कह देता हैं। योग्य वकील नहीं मिल पाने की कीमत आरोपी चुकाता ही हैं। अंतत: दोषसिद्धि हो जाती हैं, जेल जाना पड़ता हैं और चैक राशि की दुगुनी राशि अदा करनी पड़ती हैं। इसलिए वकील का चयन सावधानी से करें, अन्य जिले या राज्य में चैंक बांउस का विशेषज्ञ अधिवक्ता हैं तो उससे संपर्क करें।

अदालत में चैक पर नाम, रकम और दिनांक किसने लिखी हैं? यह सवाल कम मायने रखता हैं, चैक पर हस्ताक्षर की स्वीकृति ज्यादा मायने रखती हैं। अदालत यह मानकर चलेगी कि चैक पर अंकित रकम की देनदारी हैं, इसलिए हस्ताक्षर करके चैक जारी किया गया हैं। इसके बाद आरोपी का बचाव क्या हो सकता हैं? आरोपी कौन से दस्तावेज पेश कर सकता हैं? इसका जवाब हैं कि आरोपी यह साबित कर सकता हैं कि चैक बहुत पुराना हैं, इसका बाद में दुरूपयोग किया गया हैं तो इस तथ्य को साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत आवश्यक हैं।

आरोपी यह साबित कर सकता हैं कि चैक पर ज्यादा रकम लिखी गई हैं, वह रकम के एक भाग की अदायगी कर चुका हैं तो इसके लिए दस्तावेजी सबूत आवश्यक हैं। आरोपी यह साबित कर सकता हैं कि रकम लौटा दी गई हैं तो इसके लिए सबूत आवश्यक हैं। कर्ज देने वाले की आर्थिक हैसियत बेहद कमजोर हैं, वह इतनी बड़ी रकम देने में सक्षम नहीं है। आरोपी यह साबित कर सकता हैं चैक गुमशुदा हैं जिसकी गुमशुदगी बैंक एवं पुलिस में दर्ज हैं तो इसके लिए भी दस्तावेज आवश्यक हैं।

यदि आरोपी के पास बचाव उपलब्ध हैं तो वह मांग सूचना पत्र का जवाब अवश्य ही देगा, अन्यथा नहीं देगा। इसलिए चैंक बांउस के मामलों में अभ्यस्थ अधिवक्ता से समस्त सबूतों पर चर्चा एवं विचार करके ही जवाब देना चाहिए। मांग सूचना पत्र का जवाब नहीं देने से नुक्सान होता हैं, लेकिन गलत जवाब देने से नुक्सान ज्यादा होता हैं।

फायनेंस कंपनी, कापरेटिव सोसाईटी और बैंक से ऋण लिया गया हैं तो ऋण लेना कोई अपराध नहीं हैं, इसलिए डरना नहीं चाहिए। चैंक बांउस का कानून ऋण वसूली का कानून नहीं हैं। बैंक की किश्तों को अदा करने में अक्षम व्यक्ति एक बड़ी रकम का चैक कैसे जारी कर सकता हैं? यह प्रश्न उठता हैं और उठाना चाहिए। उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 का सहारा लेना चाहिए। नए कानून में अनुचित व्यापार प्रथा को जोड़ा गया हैं, इसका लाभ मिलता हैं। चैक बांउस कानून का विशेषज्ञ अधिवक्ता को अनुचित व्यापार प्रथा अच्छे से समझता हैं।

फायनेंस कंपनी मोटर यान पर फायनेंस करती हैं, मासिक किश्तों की अदायगी में चूक होने पर मोटर यान जप्त करके लेकर चली जाती हैं, नीलाम कर देती हैं, बाद में चैक बांउस का मामला अदालत में चलाती हैं तो उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 की सहायता ली जा सकती हैं। फायनेंस कंपनी को वाहन लौटाना पड़ सकता हैं और ग्राहक को मुआवजा भी देना पड़ सकता हैं तो इसके लिए भी दस्तावेज आरोपी के पास होना चाहिए। चैक बांउस मामले में आरोपी साबित कर सकता हैं कि चैक तो पुराना हैं तो इसके लिए भी दस्तावेज चाहिए।

मल्टी स्टैट को-ऑपरेटिव सोसाइटी या क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी चैक के जरिए ऋण वसूली करती हैं। जबकि इनके लिए अलग से वसूली के लिए अदालत गठित हैं और कानून बना हुआ हैं। को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मामलों में देखने में आता हैं कि जो ऋण राशि 24 मासिक किश्तों में अदा करना है, किश्त अदायगी में चूक होने पर अंतिम किश्त अदायगी दिनांक के पूर्व ही संपूर्ण ऋण राशि चैक पर लिखकर पेश कर देती हैं और वसूल कर लेती हैं जो कि गलत हैं।

चैक बाउंस मामलों में सुनवाई के दौरान संपूर्ण दस्तावेज को-ऑपरेटिव सोसाइटी से प्राप्त करके उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 का सहारा लिया जा सकता हैं। चैक बांउस कानून में बचाव में आरोपी को दस्तावेज पेश करना आवश्यक हैं। इस बात की संभावना हो सकती हैं कि दस्तावेज खुद परिवादी के पास हो, बैंक, फायनेंस कंपनी या को-ऑपरेटिव सोसाइटी के पास मौजूद हो जिसमें आपका बचाव मौजूद हो।

चैक बाउंस के मामलों में जमानत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि दोषमुक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, इसलिए विचार दोषमुक्ति पर ही करना चाहिए, जो अधिवक्ता दोषमुक्ति की संभावना देखता हैं, वही आपके लिए उचित अधिवक्ता हैं। समझौता करने की सलाह देने वाले अधिवक्ता से दूर रहना चाहिए। अक्सर जमानत करवाने के बाद अधिवक्ता मुकदमा छोड़ देते हैं या फिर जमानत के बाद चैक राशि अदा करने के लिए कहते हैं। बार=बार अधिवक्ता बदलने से आरोपी का बचाव खंडित हो जाता हैं, टूट जाता हैं।

चैक बांउस का मुकदमा लड़ना आरोपी के लिए बेहद महंगा होता हैं। आरोपी हस्ताक्षर से इंकार करता हैं या चैक पर नाम, रकम दिनांक लिखने से इंकार करता हैं तो हस्तलेख विशेषज्ञ से परीक्षण करवाना महंगा पड़ता हैं। बैंक अधिकारी या पुलिस अधिकारी को अदालत में तलब किया जाता हैं तो आरोपी को एक दिन का वेतन जमा करना पड़ता हैं।

विचारण न्यायालय में अंतिम बहस लिखित में आरोपी को देना पड़ता हैं साथ में भारत की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले बहस के समर्थन में पेश करना पड़ता हैं। चैक बांउस में आरोपी की ओर से पैरवी करने में सक्षम अधिवक्ता ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों को लिखते हुए बहस तैयार कर सकता हैं। इसके लिए एक विशिष्ट लेखन शैली एवं विधिक शब्दावली का ज्ञान आवश्यक हैं और श्रमसाध्य कार्य हैं। आरोपी को स्वयं से एक सवाल पूछना चाहिए कि उसके लिए इतनी मेहनत करेगा कौन?

चैंक बांउस के मामलों में चैक की रकम 5 लाख रूपये से अधिक हैं तो विशेषज्ञ अधिवक्ता मुकदमा लड़ने के लिए तैयार होते हैं, चैक की रकम 05 लाख रुपये से कम हैं तो मुकदमा लड़ने से इंकार कर देते हैं। कारण चैक बाउंस का मामला श्रमसाध्य है, बहुत परिश्रम का काम हैं।

(लेखक चेक बाउंस मामले के विशेषज्ञ हैं)

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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