Zero Balance Bank Account: आज कल कई बैंकों ने खाते में मिनिमम बैलेंस रखने का नियम लागू कर रखा है। यह मिनिमम बैलेंस नहीं होने पर बैंक ग्राहकों से चार्जेस वसूल लेते हैं। यदि आप भी बैंकों के इस नियम से परेशान हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। कई बैंक ऐसे भी हैं जहां पर ऐसी कोई शर्त नहीं है। यदि जीरो बैलेंस भी है तो भी यह बैंक कोई चार्ज वसूल नहीं करते।
गौरतलब है कि बैंक में जमा पैसों पर कई तरह के चार्ज लगते हैं। जिनमें से एक है मिनिमम बैलेंस चार्ज। बहुत से लोग इस बात से अनजान रहते हैं कि उनके खाते में अगर तय बैलेंस नहीं रहता तो बैंक उनसे शुल्क वसूल सकता है। हर बैंक की अपनी शर्तें होती हैं और यह तय करती है कि खाते में न्यूनतम कितनी राशि बनाए रखनी होगी।
मिनिमम बैलेंस क्या होता है
हर बैंक अपने ग्राहकों से यह उम्मीद रखता है कि वे अपने खाते में एक निश्चित रकम हमेशा बनाए रखें। इसे ही मिनिमम बैलेंस कहा जाता है। यदि खाते में यह राशि नहीं रहती तो बैंक सेवा शुल्क के रूप में कुछ पैसे काट लेता है। यह कटौती अलग-अलग बैंकों में अलग दरों पर होती है।

इन बैंकों में नहीं ऐसे कोई शर्त
इसके विपरीत देश के कई बड़े बैंक अब ऐसे खाते भी उपलब्ध कराते हैं जिनमें मिनिमम बैलेंस बनाए रखने की कोई शर्त नहीं होती। ये खाते खास तौर पर आम ग्राहकों और कम आय वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इन बैंकों में शामिल हैं-
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया- बेसिक सेविंग बैंक डिपॉजिट अकाउंट (ब्याज दर 2.70′)
- एचडीएफसी बैंक- बीएसबीडीए (ब्याज दर 3.00′)
- आईसीआईसीआई बैंक- बीएसबीडीए (ब्याज दर 3.00′)
- एक्सिस बैंक- बेसिक सेविंग अकाउंट (ब्याज दर 3.00′)
- यस बैंक- स्मार्ट सैलरी एडवांटेज अकाउंट (ब्याज दर 3.00′)
इसके अलावा कुछ सरकारी बैंकों ने भी अपने ग्राहकों के लिए मिनिमम बैलेंस रखने की बाध्यता हटा दी है। इनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इंडियन बैंक, केनरा बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा शामिल हैं।

इसलिए वसूलते हैं मिनिमम बैलेंस चार्ज
बैंक कई सेवाएं प्रदान करते हैं— जैसे एटीएम की सुविधा, मोबाइल बैंकिंग, नेट बैंकिंग और ग्राहक सहायता केंद्र। इन सेवाओं को संचालित रखने में खर्च आता है। इसके अलावा बैंक को अपने कर्मचारियों को वेतन देना और शाखाओं का रखरखाव करना पड़ता है। यही कारण है कि अगर कोई ग्राहक तयशुदा राशि नहीं रखता तो बैंक इस खर्च की भरपाई के लिए शुल्क लेता है।
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दो प्रकार के होते हैं मिनिमम बैलेंस
आम तौर पर ग्राहकों को दो तरह के मिनिमम बैलेंस बनाए रखने होते हैं। पहला दैनिक औसत बैलेंस, जो हर दिन खाते में बनाए रखना पड़ता है। दूसरा मासिक औसत बैलेंस, जो पूरे महीने के औसत के आधार पर तय किया जाता है। यदि इन दोनों में से कोई भी मानक पूरा नहीं होता, तो बैंक चार्ज लगा देता है।
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ग्राहकों को यह आती हैं परेशानियां
आजकल ज्यादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए सैलरी अकाउंट किसी एक बैंक में खोलती हैं। नौकरी बदलने पर नई कंपनी का सैलरी अकाउंट दूसरे बैंक में खुल जाता है और पुराना खाता सेविंग अकाउंट में बदल जाता है।
ऐसे में कई लोगों के पास एक साथ कई खाते हो जाते हैं और सभी में मिनिमम बैलेंस बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में सबसे बेहतर विकल्प यह है कि जिन खातों की अब जरूरत नहीं है उन्हें बंद कर दिया जाएं। इससे अनावश्यक चार्ज लगने से बचा जा सकता है।
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