Success story: मध्यप्रदेश के अलीराजपुर के ग्राम जाम्बू खेड़ा निवासी श्रीमती सेल बाई दीदी की जिंदगी कभी गरीबी और संघर्ष की कहानी थी। वर्षा आधारित खेती और मजदूरी के भरोसे चलने वाला उनका परिवार मुश्किल से 3 से 4 हजार रुपये मासिक कमाता था। पति और चार बच्चों के साथ जीवन बेहद कठिन था। ज़रूरतों के लिए कभी रिश्तेदारों से मदद मांगनी पड़ती, तो कभी साहूकारों के ऋण लेकर सालों तक चुकाना पड़ता था।
वर्ष 2017 में जब राज्य आजीविका मिशन के तहत स्व-सहायता समूह गठन के विषय में उनके फलिया में एक बैठक हुई। बैठक में उन्हें जानकारी मिली कि कैसे स्व-सहायता समूह बनते हैं, कौन जुड़ सकता है और क्या लाभ होते हैं। उन्होंने यह सब परिवार को बताया और सभी की सहमति से ‘बाबा देब आजीविका समूह’ से जुड़ गईं। यहीं से उनके जीवन में बदलाव की शुरुआत हुई।

समूह से जुड़ने पर मिला प्रशिक्षण (Success story)
स्व-सहायता समूह में जुड़ने के बाद उन्हें कृषि कार्यों का प्रशिक्षण मिला, जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन की तकनीक सीखी। सरकारी योजनाओं की जानकारी मिली, बैंक से जुड़ाव बढ़ा और धीरे-धीरे आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ने लगे। समूह से मिले ऋण की मदद से उन्होंने पहले खाद-बीज खरीदे, फिर बैल, सिंचाई पंप, पाइप और सिंचाई के अन्य साधन जुटाए।

खेती में सुधार हुआ तो बढ़ी आमदनी (Success story)
खेती में सुधार हुआ और दो फसलें उगाने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने भूमिगत पाइप लाइन लगवाई, जिससे सिंचाई क्षेत्र बढ़ा और आमदनी में उल्लेखनीय इज़ाफा हुआ। फिर पति के लिए फर्नीचर निर्माण कार्य के लिए मशीन खरीदी, जिससे घर पर ही फर्नीचर का काम शुरू हुआ। आज उनका परिवार सब्जी की खेती, फर्नीचर निर्माण और खेती के माध्यम से हर महीने 20 से 22 हजार रुपये कमाता है।
बच्चे पा रहे शिक्षा, पक्का मकान बना (Success story)
बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो रही है। एक बेटा तकनीकी शिक्षा के लिए बाहर गया है। कच्चे घर से अब चार कमरों का पक्का मकान बना है – प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना से गैस कनेक्शन भी मिला। अब सेल बाई दीदी सिर्फ एक गृहणी नहीं हैं, बल्कि अपने परिवार की मजबूत आधारशिला हैं। गांव में पहचान बनी है, निर्णयों में उनकी भागीदारी है, बैंक और बाजार तक उनकी सीधी पहुंच है।
भविष्य के लिए है उनकी यह योजना (Success story)
भविष्य में वे ट्यूबवेल लगाकर तीन फसलें लेना चाहती हैं और एक बड़ी फर्नीचर दुकान खोलकर स्थायी रोजगार का साधन बनाना चाहती हैं। सेल बाई दीदी गर्व से कहती हैं- “अगर आजीविका मिशन न होता, तो मैं आज भी मजदूरी कर रही होती, साहूकारों के कर्ज में डूबी होती और मेरे बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते। आजीविका मिशन हमारे जीवन में बदलाव लाने वाला वरदान साबित हुआ है।” (Success story)
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