Kuldevi Puja : जरूरी है सबसे पहले कुलदेवी की पूजा-अर्चना, उपेक्षा करने पर कहीं नहीं मिलती है सफलता

▪️ पंडित मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)

Kuldevi Puja : हिंदू धर्म में हर परिवार की एक कुलदेवी जरूर होती हैं। किसी भी शुभ अवसर और प्रमुख पर्वों पर इनका सबसे पहले पूजन और आशीर्वाद लेने की परंपरा है। इसका बड़ा महत्व है और माना जाता है कि ऐसा किए बिना कोई भी शुभ कार्य न तो पूरा होता है और ना ही अपेक्षित परिणाम ही प्राप्त होते हैं। आज के इस लेख में हम इस बारे में ही चर्चा करेंगे।

यह विषय बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस विषय को समझते वक्त सभी साधना, कुण्डलिनी, श्री विद्या, दस महाविद्या जो भी कोई साधना आप कर रहे हो, उन सबको एक तरफ रखना होगा। क्योंकि, कुलदेवी की कृपा का अर्थ है- सौ सुनार की एक लोहार की। बिना इसकी कृपा से किसी के कुल का वंश ही क्या, कोई नाम, प्रसिद्धि कुछ भी आगे नहीं बढ़ सकता।

साधनाओं के भी नहीं मिलते फल (Kuldevi Puja)

लोग भावुक होकर अथवा आकर्षित होकर कई साधनाएं तो करते हैं, पर वो जानते नहीं कि जब आप अपनी कुलदेवी को पुकारे बिना किसी भी देवी देवता की साधना करते हो तो वो साधना कभी यशस्वी नहीं होती। उलटा कुलदेवी का प्रकोप अथवा रुष्टता और ज्यादा बढ़ती है।

पूजा घर में रहती हैं विराजमान (Kuldevi Puja)

कई जगहों पर आज भी कुछ परंपरा हैं। घर के पूजा घर में कुलदेवी के रूप में सुपारी अथवा प्रतिमा का पूजन करना, घर से बाहर लंबी यात्रा हो तो कुलदेवी को पहले कहना, साल में दो बार कुलदेवी पर लघुरूद्र अथवा नवचंडी करना, यह सब आज भी प्रचलित है।

कुलदेवी की उपेक्षा के यह होते दुष्परिणाम (Kuldevi Puja)

  • हर घर की एक कुलदेवी रहती हैं। लेकिन आज भारत में 70% परिवार अपने कुलदेवी को नहीं जानते हैं। कुछ परिवार बहुत पीढ़ियों से कुलदेवी का नाम तक नहीं जानते। इसके कारण एक निगेटिव दबाव उस घर के कुल के ऊपर बन जाता है और अनुवांशिक समस्या पैदा होती हैं।
  • कुलदेवी की कृपा के बिना अनुवांशिक बीमारी पीढ़ी में आती है। एक ही बीमारी के लक्षण सभी लोगों को दिखते हैं। मनासिक विकृतियाँ अथवा स्ट्रेस पूरे परिवार में आ जाती हैं। कुछ परिवार व्यसनों की ओर इतने बढ़ जाते हैं कि सब कुछ गवां देते हैं। बच्चे भी गलत मार्ग पर भटक जाते हैं।शिक्षा में अड़चनें आती है।
  • किसी परिवार में सभी बच्चे अच्छे पढ़ते हैं फिर भी जॉब ठीक नहीं मिलती। कभी किसी के पास पैसा बहुत होता है पर मनासिक समाधान नहीं होता। यात्राओं में अपघात होते हैं अथवा अधूरी यात्रा होती है। बिजनेस में भी ग्राहक पर प्रभाव नहीं बनता अथवा आवश्यक स्थिरता नहीं आती।
  • विदेशों में बहुत भारतीय बसे है। उनके पास पैसा होकर भी एक असमाधानी वृत्ति अथवा कोई न कोई अड़चन आती है। इतने लंबा सफर से भारत में कुलदेवी के दर्शन के लिए नहीं आ सकते। यह सब परेशानी हम देख रहे हैं।
  • यह सब परेशानी आप किसी हीलिंग, किसी ध्यान अथवा किसी दस महाविद्या के मंत्रों से कम तो कर सकते हैं, लेकिन दूर नहीं कर सकते। अगर और विस्तार से कहूँ तो कोई भी दस महाविद्या की दीक्षा में सबसे पहले गुरु उस साधक की कुलदेवी का जागरण करवाने की दीक्षा अथवा साधन पहले देता है।
  • आजकल महाविद्याओं की साधनाओं को सही तरीके से कोई भी नहीं करता। सभी सीधा मंत्र देते हैं। बाद में उसका फल यह मिलता है कि वो साधक ऐसे जगह पर फेंक दिया जाता है, जहाँ से वो कभी उठ ही नहीं पाते।

सबसे पहले अपनी कुलदेवी को पुकारो (Kuldevi Puja)

इसलिए, कोई भी महाविद्या के प्रति आकर्षित होने से पहले अपनी कुलदेवी को पुकारो। ऐसा नहीं किया तो आज नहीं तो कल की पीढ़ी के लिए बहुत दिक्कतें होगी। कइयों को लगेगा वो श्रीनाथ जी जाते हैं, तिरुपति जाते हैं, चारधाम जाते हैं, शिर्डी जाते हैं या हर कहीं माथा टेकने जाते हैं। साल में एक-दो बार दर्शन के लिए।

इससे कुलदेवी प्रसन्न नहीं होती। बल्कि वो शक्तियाँ भी आपको यही कहेंगी कि पहले अपने माता-पिता को याद करो फिर मेरे पास आओ। कुलदेवी के रोष में कई संस्थान, राजवाड़े, महाराजे खत्म हुए। कई परिवार के वंश नष्ट हुए। इसलिए कुलदेवी का पूजन पहले करें।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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