Kachhalia Village Tradition: मध्यप्रदेश का अनूठा गांव, यहां दिवाली पर भी नहीं करते घरों पर रंग रोगन, आज भी कायम परंपरा

Kachhalia Village Tradition: भारत के कई गांवों में अलग-अलग परपंराएं देखने को मिलती है। किसी गांव में किन्हीं कारणों से होली नहीं मनाई जाती तो कहीं दिवाली नहीं मनाई जाती। कुछ गांवों में यह त्योहार उन दिनों में नहीं मनाए जाते, जिस दिन बाकी सब लोग मनाते हैं। इसके विपरीत वहां कुछ दिन पहले या फिर बाद में मनाए जाते हैं। इसके अलावा भी कई अन्य परंपराओं का पालन किया जाता है।

मध्यप्रदेश के आलोट तहसील का कछालिया गांव भी अपनी ऐसी ही एक परंपराओं के कारण एक बार फिर चर्चा में है। दीपावली का त्योहार करीब है। ऐसे में जहां हर जगह घरों की सफाई, रंगाई और सजावट का उत्साह देखने को मिलता है, वहीं इस गांव में ऐसा कुछ भी नहीं है। न कोई घर की रंगाई पुताई कर रहे हैं और न ही साज-सज्जा। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह गांव अपनी इस परंपरा का पूरी निष्ठा से पालन कर रहा है।

रंग-रोगन से दूर गांव की पहचान

कछालिया गांव आलोट तहसील से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव अपनी मान्यताओं और धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। दीपावली के दौरान जब बाकी लोग अपने घरों, दुकानों और दफ्तरों को रंग-बिरंगे रंगों से सजा रहे होते हैं, तब भी यहां के लोग अपने घर वैसे ही रखते हैं जैसे साल भर रहते हैं। इस परंपरा का पालन गांव के हर परिवार द्वारा किया जाता है।

Kachhalia Village Tradition: मध्यप्रदेश का अनूठा गांव, यहां दिवाली पर भी नहीं करते घरों पर रंग रोगन, आज भी कायम परंपरा

केवल मंदिर में ही होता रंग रोगन

गांव में लगभग 300 से अधिक मकान हैं और आबादी करीब 1500 के आसपास है। फिर भी किसी भी घर की दीवारों पर रंग नहीं चढ़ाया गया। केवल सरकारी दफ्तरों और मंदिरों को ही रंगा जा सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि यही परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और अब यह गांव की पहचान बन चुकी है।

दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ता

कछालिया गांव का एक और अनोखा नियम यह है कि कोई भी दूल्हा अपने विवाह के समय घोड़ी पर बैठकर मंदिर के सामने से नहीं निकलता। गांव के काल भैरव मंदिर के पुजारी नाथूपूरी और चैनपूरी गोस्वामी के अनुसार यह मंदिर बेहद प्राचीन और चमत्कारिक है। कहा जाता है कि यहां से दूल्हा अगर घोड़ी पर बैठकर गुजर जाए तो उसे अनिष्ट का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह कोई अर्थी भी मंदिर के सामने से नहीं निकाली जाती।

Kachhalia Village Tradition: मध्यप्रदेश का अनूठा गांव, यहां दिवाली पर भी नहीं करते घरों पर रंग रोगन, आज भी कायम परंपरा

नियमों की नहीं करता कोई अनदेखी

ग्रामीणों के अनुसार जो व्यक्ति अपने घर पर रंग करवाता है या मंदिर के नियमों की अनदेखी करता है, उसके परिवार में बीमारी या किसी अप्रिय घटना का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि सभी लोग बिना विरोध इस परंपरा का पालन करते हैं।

रंगोली और काले रंग पर भी रोक

दिवाली के अवसर पर जब बाकी गांवों में महिलाएं अपने घरों के आंगन में रंगोली बनाकर खुशियां मनाती हैं, तब कछालिया में एक भी रंगोली नहीं बनती। यहां के लोगों का विश्वास है कि रंगोली बनाना या काला रंग पहनना अशुभ माना जाता है।

काले कपड़े-जूते से भी परहेज

गांव में कोई व्यक्ति काले कपड़े या काले जूते नहीं पहनता। यहां तक कि कोई अपने घर की छत पर कवेलू भी नहीं लगाता। ग्रामीणों के अनुसार, कभी एक युवक ने कवेलू लगवाई थी, जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई थी। तभी से इस परंपरा को और कड़ा बना दिया गया।

बिना छने पानी पीने की परंपरा

गांव में एक और अनोखी परंपरा है कि यहां के लोग छना हुआ पानी नहीं पीते। गांव के ही एक ग्रामीण बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति पानी छानता है, तो उस पानी में कीड़े पड़ जाते हैं। इसलिए सभी लोग सीधे बिना छने पानी का ही उपयोग करते हैं। यह बात भले ही वैज्ञानिक दृष्टि से असंभव लगे, लेकिन ग्रामीणों के अनुभवों के आधार पर यह परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है।

बाबा के सम्मान के कारण परपंरा

कछालिया की परंपराओं को सुनकर कई लोग इसे अंधविश्वास मान सकते हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह उनकी आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। वे बताते हैं कि यह सब भगवान काल भैरव के सम्मान में किया जाता है। उनके अनुसार, यह कोई डर या अंधविश्वास नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही धार्मिक मान्यता है, जो अब गांव की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है।

मान्यताओं को सहेज कर रखा है गांव ने

आधुनिक युग में जहां लोग परंपराओं को पीछे छोड़ते जा रहे हैं, वहीं कछालिया गांव ने अपनी मान्यताओं को सहेजकर रखा है। यह गांव इस बात का उदाहरण है कि आस्था और परंपराएं आज भी समाज में गहराई से जमी हुई हैं। यहां के लोग मानते हैं कि जब तक वे अपने देवी-देवताओं की श्रद्धा और नियमों का पालन करते रहेंगे, गांव में सुख-शांति बनी रहेगी।

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