प्रकाश सराठे, रानीपुर (Groom came on a bullock cart)। शादियों में आजकल फिजूलखर्ची आम बात हो गई है। डीजे, शानदार साज-सज्जा, दुनिया भर की चमक-धमक, खाने में पचासों आइटम, और फिर लाखों का दहेज…। इन सबके बिना आज किसी शादी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। केवल उच्च वर्ग ही नहीं बल्कि मध्यम वर्गीय परिवारों में भी शादियां अब इसी तरह होने लगी है।
इन सबके विपरीत क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई शादी इन सबके बिना भी हो सकती है? आपका जवाब होगा… हर्गिज नहीं। लेकिन, मध्यप्रदेश के बैतूल में मंगलवार को ठीक ऐसा ही हुआ। न तो किसी विशाल मैदान में बड़ा सा टेंट लगा, न कोई डेकोरेशन या चमक-धमक वाली साज-सज्जा हुई और न ही डीजे का शोर हुआ।
यहां तक कि दूल्हे या बारातियों को लाने के लिए वाहन लगे और न घोड़ी की जरुरत पड़ी। दूल्हे राजा एक बैलगाड़ी पर सवार होकर आए और बिना दान-दहेज के अपनी दुल्हनिया को ब्याह ले गए। इस शादी के बारे में जिसे भी पता चल रहा है वह इस सादगी भरी शादी की खासी प्रशंसा कर रहा है।

चिखलाढाना में हुई यह अनोखी शादी (Groom came on a bullock cart)
यह शादी बैतूल जिले के घोड़ाडोगरी मुख्यालय से 9 किलोमीटर की दूरी पर कुही गांव के चिखलाढाना में मंगलवार को हुई। इसमें बिना दान दहेज के विवाह संपन्न कराया गया। यह विवाह आदिवासी परंपरा के अनुरूप किया गया। यह विवाह मस्कोले और बड़कड़े परिवार के बीच संपन्न हुआ।

वाहनों की नहीं पड़ी जरा भी जरुरत (Groom came on a bullock cart)
इस शादी में आदिवासी परंपरागत बैंड पार्टी का उपयोग किया गया। आधुनिकता की बयार के बावजूद जीप, कार, मोटर साइकिल, डीजे का कतई इस्तेमाल नहीं हुआ। बैलगाड़ी से दूल्हे दिनेश बड़कड़े को दुल्हन के आवास तक लाया गया।
यहां देखें इस सादगी भरी शादी का वीडियो… (Groom came on a bullock cart)
आदिवासी समाज के भगत ने कराई शादी (Groom came on a bullock cart)
आदिवासी समाज के भगत के माध्यम से शादी संपन्न कराई गई। साथ ही वैवाहिक कार्यक्रम में किसी भी तरह का कोई दान या दहेज नहीं लिया गया। अन्यथा आज कल दान-दहेज की व्यवस्था करने में ही कई बेटियों के पिता कर्जदार हो जाते हैं या प्रॉपर्टी बेचने को मजबूर हो जाते हैं।

परंपरा के अनुसार कराया गया भोजन (Groom came on a bullock cart)
दूल्हे के रिश्तेदार रजनीकांत वटी और शिवराम मस्कोले ने बताया कि समाज के पांच सौ लोगों को दोनों पक्ष के माध्यम से आमंत्रित करके पूरी परंपरा के अनुरूप भोजन कराया गया। वैवाहिक कार्यक्रम में किसी भी तरह का कोई दान दहेज का लेनदेन नहीं किया गया।
मात्र 51 हजार रुपये में हो गई शादी (Groom came on a bullock cart)
समाज के लोगों के माध्यम से स्वेच्छा धनराशि वर-वधु को देने की पहल की गई। बुंदेल मस्कोले, जुबलाल भट्टी की बातों को माने तो दोनों पक्ष को मिलाकर इस वैवाहिक कार्यक्रम में कुल 51 हजार रुपए की राशि खर्च होना बताया जा रहा है। इन्हीं सब कारणों से यह शादी सादगी की मिसाल बन गई है।
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