⊗ इंजीनियर योगेश सरोदे, मोहगांव हवेली (छिंदवाड़ा)
Ardhanarishwar Jyotirlinga : भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश का छिंदवाड़ा जिला सतपुड़ा के सघन वनों से आच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं की सुरम्य वादियों, कल-कल बहती नदियों, पहाड़ियों, झरनों एवं जलाशयों के मनोहारी दृश्यों को समेटे हुये एक रमणीक क्षेत्र है। इस जिले की सौंसर तहसील में विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों के समकालीन एवं प्रभावी अर्धनारिश्वर ज्योतिर्लिंग मोहगांव हवेली में सर्पा नदी के तट पर अवस्थित है।
यह एक अति पुरातन ऐतिहासिक सनातन महत्व का एक सिद्ध स्थल है। किवदंति एवं साक्ष्य प्रमाण इसके प्राचीनतम अस्तित्व को उद्घाटित करते हैं। इस मंदिर के पुरातन अस्तित्व को मंदिर परिसर में प्रतिष्ठित अर्धनारिश्वर ज्योतिर्लिंग, माता जगदंबा की मूर्ति एवं नंदीश्वर महाराज की प्रतिमा जो कि एक ही काल में एक ही तरह के पत्थरों से निर्मित हैं और जिनका मूल स्वरूप समय के थपेड़ों, परिवर्तित जलवायु एवं पर्यावरण के दुष्प्रभाओं से क्षरित हुआ है, अपने अति प्राचीनतम लगभग 12 ज्योतिर्लिंगों के ही समकालीन उद्भव को और इनका क्षरित स्वरूप इसके अतिप्राचीनतम आदिकालीन अस्तित्व को प्रमाणित करता है।
स्थापना को लेकर यह मान्यताएं
इस मंदिर के निर्माण एवं स्थापना के काल के संदर्भ में अनेक मान्यताएं एवं किंवदंतियां प्रचलित हैं। जिनमें एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर के निर्माण का काल द्वापर युग का है। पांण्डवों ने अपने अज्ञातवास की अवधि में मोहगांव मे अर्धनारिश्वर ज्योतिर्लिंग एवं जामलापानी में स्थित सिध्देश्वर महादेव की स्थापना की थी। जिसमें उनके द्वारा एक विशाल एवं अद्भुत बावड़ी का निर्माण भी किया गया था।
मंदिर प्रांगण में स्थित हैं प्राचीन शिलालेख
इस मंदिर के प्रांगण में स्थित पीपल एवं उमर के वृक्षों के नीचे प्राचीन शिलालेख भी विद्यमान है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसकी स्थापित मूर्तियां परमार कालीन आठवीं शताब्दी की बताई जाती है, जो कि आदि शंकराचार्य के समकालीन है। इससे इनका प्राचीनतम अस्तित्व प्रमाणित होता है। कालान्तर में हिन्दू राजाओं के द्वारा इस मंदिर का पुनरूद्धार एवं पुनर्निर्माण किया गया होगा जो कि मंदिर की मुगलकालीन स्थापत्य कला से स्पष्ट होता है और इससे इसके प्राचीनतम अस्तित्व की पुष्टि भी होती है।
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चारों धामों के केंद्र में है स्थित
भारत के विश्व प्रसिद्ध 11 मंदिर जिनमें भारत के दक्षिण में रामेश्वरम, अन्य चार मंदिर और भारत के उत्तर में गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ और ऋषिकेश मंदिर स्थापित है, इनके नाभि (मध्य) क्षेत्र में अर्धनारिश्वर मंदिर अवस्थित है। इसी प्रकार भारत के मानचित्र मे पूर्व एवं पश्चिम में द्वारका पुरी एवं जगन्नाथ मंदिर स्थापित है और अर्धनारिश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर चारों धामों का केन्द्रीय बिंदु बनता है।
इस मंदिर की यह हैं मुख्य विशेषताएं
मंदिर के निर्माण की वास्तु संरचना में है, जो कि महामृत्युंजय यंत्र पर आधारित है जो इसको एक सिद्ध स्थल के रूप में स्थापित करती है। मोहगांव स्थित अर्धनारिश्वर ज्योतिर्लिंग का महात्म्य इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाता है, कि यह ज्योतिर्लिंग भारत के मानचित्र में भारत के उत्तरी क्षेत्र गंगोत्री केदारनाथ धाम से भारत के दक्षिणी क्षेत्र रामेश्वरम तक खींची गई सीधी काल्पनिक रेखा में स्थित है, लगभग मध्य क्षेत्र में स्थित होने के कारण इसका महात्म्य और भी बढ़ जाता है।
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शिवलिंग का स्वरूप प्रकृति निर्मित
इस शिवलिंग का स्वरूप जिसमें हल्के लाल भूरे रंग से ब्रह्माण्डीय उर्जा स्तंभ एवं गहरे काले रंग से जलहरी अर्थात प्रकृति निर्मित है जो कि इस ज्योतिर्लिंग के अनंत ब्रह्माण्डीय प्रतीक के अर्थनारिश्वर स्वरूप को प्रकट करती है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के प्रवेश द्वार से गर्भ गृह तक के चार परिसर चारों पुरुषार्थोँ-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं।
कार्तिक एवं शिवरात्रि माह का विशेष महत्व
इस मंदिर की अति विशिष्ट विशेषताओं में कार्तिक एवं शिवरात्रि के माह का विशेष महत्व है जिसमें इन माह के दिनों में सूर्योदय के समय (अरुणोदय काल) में सूर्य की प्रथम रश्मियां जब मंदिर में प्रवेश कर शिवलिंग पर पड़ती है तब उससे ऐसा प्रतीत होता है की मानो सूर्य का रश्मि पुंज शिवलिंग को प्रकाश स्नान करा रहा हो। यह मनरम्य दृश्य कार्तिक मास में प्रतिदिन प्रात: आरती के पश्चात 6.50 से 7 बजे तक केवल 10 मिनट तक देखने को मिलता है। गौरतलब हैं कि गर्भ गृह में प्रकाश प्रवेश हेतु कोई उचित स्थान ही नहीं है।
भीषण बाढ़ और अकाल से दिलाते मुक्ति
इस मंदिर की विशेषताओं में ऐसी मान्यता है कि भीषण बाढ़ एवं अकाल (दुर्भिक्ष) के समय समस्त ग्रामवासियों द्वारा जब शिवलिंग का जलाभिषेक कर उन्हें जलमग्न किया जाता है तब बाढ़ का पानी शांत हो जाता है। इसी प्रकार अकाल के समय वर्षा द्वारा सूखे का संकट दूर हो जाता है। इस मान्यता की प्रामाणिकता ग्रामवासियों द्वारा ऐसे संकट की परिस्थितियों में कई बार प्रयोग कर क्षेत्र को संकट से मुक्त कर की गई है।
इस मंदिर का वास्तु निर्माण अनुपातिक है, जिसमें गर्भ गृह से दुगना नंदी परिसर, नंदी परिसर से दुगना चतुर्धार का परिसर, चतुर्धार के परिसर से दुगना प्रागंण परिसर है जो अद्वितीय है। मंदिर का वास्तु निर्माण इस प्रकार का है कि मंदिर के पूर्वाभिमुख प्रवेश द्वार से नंदी, गर्भ गृह एवं शिखर कलश एक साथ दृष्टिगोचर होते हैं।
जलाभिषेक का जल पहुंचता सर्पा नदी में
मंदिर में जलाभिषेक का जल जलहरी से मंदिर परिसर में अंदर ही अंदर गुप्त एवं रहस्यमयी रूप से सर्पा नदी मे विसर्जित होता है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में सावन माह में सर्पा नदी की बाढ़ की स्थिति में सर्पा नदी का जल शिवलिंग का अभिषेक करता था। संभवत: इसी मार्ग से जलाभिषेक के लिये जल प्रवेश करता था।
इस मंदिर की विशिष्ट विशेषताओं में यहा कालसर्प योग के दोषों की शांति कर कालसर्प योग का निवारण किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि, इस क्षेत्र मे प्राकृतिक रूप से सर्पा नदी ओम की आकृति बनाकर प्रवाहित होती है।
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मोहगांव : प्राचीन काल से ही धर्मस्थली
प्राचीन काल से ही मोहगांव धर्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध रहा है। संत एकनाथ महाराज के द्वारा पैठन में स्थापित विजय पाण्डुरंग की मूर्ति की तरह ही मोहगांव में आप के द्वारा पंढरीनाथ मंदिर में विजय पाण्डुरंगजी की मूर्ति की स्थापना की गई थी। समस्त भारत में विजय पाण्डुरंग की मात्र दो ही मूर्तियां स्थापित हैं जिनकी स्मृति में प्रतिवर्ष कार्तिक माह मेें सवामास के उत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसके प्रतीक रूप में आज भी प्रतीकात्मक पांच साप्ताहिक बाजार सर्पा नदी के तट पर लगाये जाते हैं।
तुकड़ो जी के आगमन से महाशिवरात्रि उत्सव
इसी प्रकार जब राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का आगमन इस पवित्र नगरी में हुआ था, तब उनके द्वारा मंदिर में कैसे करूं तेरा ध्यान मन नहीं लागे… भजन का गायन किया गया था। इसके पश्चात से ही मंदिर में महाशिवरात्रि के उत्सव के आयोजन की परम्परा का निर्माण हुआ। गाड़गे महाराज द्वारा यहां विशाल भण्डारा का आयोजन किया गया था।
इसी तरह शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी द्वारा महारूद्र यज्ञ का आयोजन ज्योतिर्लिंग परिसर में किया गया था। यहां दत्त मंदिर, श्री राम मंदिर, कबीर बोध मंदिर, रेणुका माता मंदिर, गिरिधरण बाके बिहारी मंदिर, आन्या महाराज एवं अन्य पांच तपस्वियों की जीवंत समाधियां हैं, जो आज भी अस्तित्व में हैं। इसी के साथ आदिशक्ति माँ भवानी मंदिर, शीतला माता, मैक्साई माता तथा मरामाई मंदिर भी प्रसिद्ध हैं।
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