Surprising But True : इन दिनों सूर्यदेव आग बरसा रहे हैं। इससे क्या आम और क्या खास, सभी बेहद परेशान हैं। इन सबके विपरीत क्या आप जानते हैं कि सूरज की इस तपन से भोजन भी बनाया जा सकता है? वह भी मात्र एक बांस की टोकरी के सहारे..? शायद आप यकीन न करें, परंतु यह सच है।
यह कर दिखाया है नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने। उन्होंने दोपहर की तपन से परेशान लोगों को न केवल धूप के फायदे बताए बल्कि बतौर प्रेक्टिकल सामने करके भी दिखाया। यह नजारा देख हर कोई आश्चर्यचकित नजर आया।
आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की टोकरियों में अनाज अथवा किसी समारोह में बने व्यंजनों को रखा जाता है। लेकिन, यही टोकरी स्वयं व्यंजन बनाने का साधन बन सकती है। वह भी बिना गैस, बिजली या कैरोसिन के।
ऐसे तैयार किया टोकरी चूल्हा
सारिका ने तपती धूप के बीच बांस की टोकरियों में अंदर की ओर एल्यूमिनियम फॉईल लगाई। जिससे यह डिश की तरह सूरज की किरणों को समेटने लगी। टोकरी के केंद्र में बाहर से काले पुते बर्तन में पानी में मैगी रखकर धूप में रखा गया।
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कुछ ही मिनटों में पकी मैगी
कुछ मिनिट बाद जब बर्तन को खोलकर देखा गया तो मैगी थी तैयार खाने के लिये। इसमें मसाले मिलाकर इसका स्वाद दर्शकों ने लिया। अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सारिका ने इस प्रयोग को घरेलू सामग्री से कर दिखाया।
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ऐसे हो पाता है संभव (Surprising But True)
सारिका ने बताया कि सूर्य का प्रकाश अपने उच्च विकिरण के साथ साल में लगभग 7 माह तक उपलब्ध रहता है। बांस की टोकरी या अन्य घरेलू सामग्री से कुकर तैयार करके प्रात: 8 बजे से सायं 4 बजे के बीच 150 डिग्री सैल्सियस से अधिक तापमान प्राप्त किया जा सकता है। इससे घरेलू भोजन का कुछ भाग बनाकर एलपीजी की बचत की जा सकती है। नीचे देखें वीडियो…
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टोकरी में यह पका सकते (Surprising But True)
सारिका ने बताया कि इस प्रयोग से मूंगफली को सेकना, खिचड़ी, सब्जी, दाल, चावल बनाने जैसे कार्य आसानी से किये जा सकते हैं। इस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य सूर्य की असीमित ऊर्जा के उपयोग के बारे में आम लोगों को जागरूक करना था।
कैसे काम करती है टोकरी (Surprising But True)
बांस की टोकरी में लगी एल्यूमिनियम फॉईल एक रिफलेक्टर का कार्य करती है। यह टोकरी में आने वाले सूर्य प्रकाश को बीच में रखे बर्तन पर केंद्रित करके गर्म करती है। इसे बर्तन बाहर से काले रंग से रंगा जाता है जो कि उष्मा का सबसे अच्छा अवशोषक होता है। इसकी मदद से लगभग 140 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान प्राप्त हो जाता है।
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