Machana River Story : माचना की व्यथा… मैं बढ़ रही हूं अकाल मौत की ओर, कभी चलती थी इठलाती-बलखाती

Machana River Story : माचना की व्यथा... मैं बढ़ रही हूं अकाल मौत की ओर, कभी चलती थी इठलाती-बलखाती

Machana River Story :  मैं माचना नदी हूं… अकाल मौत की तरफ बढ़ती हुईं आज आपसे अपनी दुर्दशा की कथा कहने बैठी हूं…। कभी मैं भी बलखाती, इठलाती चलती थी। मेरी गोद में कभी मछलियों की दर्जनों प्रजातियां और जल पक्षी आश्रय पाते थे। लेकिन, अब मैं लकवा ग्रस्त हूं। उसी इंसान की बदौलत जिस की प्यास मेरा निर्मल जल बुझाता था और बुझाता है। कभी-कभी मैं सोचती हूं कि जब गंगा, यमुना जैसी मेरी यशस्वी बहनें तिरस्कार झेल रही हैं तो मेरी भला क्या हस्ती! क्यों कोई मेरी विपदा पर कान धरे। फिर भी कहती हूं आज अपने “मन की बात।” यदि बन पड़े तो कुछ करना, कुछ ना कर सको तो सिर्फ इतना ही करना कि मेरे आंचल को कूड़ा, करकट, पन्नी डालकर मैला मत करना। और कुछ ज्यादा करने का सामर्थ्य हो तो आने वाली बरसात में मेरे किनारे पर एक वृक्ष जरूर लगा देना…।

Machana River Story : मैं बैतूल जिले के पूर्व से निकलकर उत्तर की ओर बहती हूं। आमला के समीप ग्राम ससाबड़ के निकट उद्गम स्थल से निकलकर लगभग 180 किलोमीटर की दूरी तय कर ढोढरमोहर के पास तवा नदी में मिल जाती हूं। मेरे किनारे बसे गांवों के ट्यूबवेल वर्ष भर पानी देते हैं। देखते ही देखते जलस्तर कम होता चला गया है। मैं आज से 15-20 बरस पूर्व तक पूरे वर्ष भर बहती थी। जिसका कारण मेरे किनारों पर सघन वन था। धीरे-धीरे वन क्षेत्र समाप्त होकर मैदान बन गए हैं। मुझे वर्ष भर सदानीरा बनाने के लिए मेरे किनारों पर बसे प्रत्येक गांव में सघन वन बनाने की आवश्यकता है…।

Machana River Story : माचना की व्यथा... मैं बढ़ रही हूं अकाल मौत की ओर, कभी चलती थी इठलाती-बलखाती

किनारों पर बसे ग्रामीण मेरी पूजा करते हैं। मुझे स्वच्छ रखते हैं क्योंकि मेरा जल किसानों के लिए वरदान है। किनारों पर अच्छी फसल पकती है। भूमिगत जल रिसाव से भूजल स्तर का संतुलन बनाए है। किसान धन-धान्य से संपन्न है। शहरी सीमा में प्रवेश करते ही मेरा रुप मैला हो जाता है। जिस नगर को मैं पानी पिलाती हूं आज वहीं सबसे ज्यादा प्रदूषित हूं। मेरी दुर्दशा का मुख्य जिम्मेदार वर्तमान में अंधाधुंध बढ़ता शहरीकरण, अव्यवस्थित औद्योगिकरण की अंधी दौड़, किनारे पर अतिक्रमण, निस्वार्थ की बेशुमार नुमाइश तथा घोटालों की राजनीति ने मुझे इस कदर मैला कर डाला कि अब जख्मों को कुरेदना जैसा है…। मेरी व्यथा को नहीं समझा गया तो वह दिन दूर नहीं जब मैं नदी के स्थान पर केवल नाले के रूप में बहती नजर आऊंगी और फिर कोई चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे….।

आपकी

बैतूल की जीवन रेखा माचना

प्रस्तुति : लोकेश वर्मा

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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