▪️ मनोहर अग्रवाल, खेड़ी सांवलीगढ़
Jungle Bhamodi: (बैतूल)। ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की चाह में इंसान का जीवन इतना अस्त-व्यस्त हो गया है कि उसे खाने-पीने तक का होश नहीं रहा। वहीं जब स्थिति काबू से बाहर जाने लगती है तब उसे अपनी सेहत का ध्यान आता है। इसके लिए डॉक्टरों की फीस और पोषण आहार पर उसे बेहिसाब पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में लोगों को याद आता है कि हमारे खेतों और जंगलों में ही ऐसी एक से बढ़कर एक खाद्य सामग्री हैं जो या तो निःशुल्क उपलब्ध है या बेहद कम दामों में। इनकी खासियत है कि एक ओर जहां वे बेहद पौष्टिक होती है वहीं स्वाद में भी लाजवाब होती हैं।
बैतूल जिले के खेड़ी सांवलीगढ़ के बाजार में भी जंगल में निःशुल्क मिलने वाली एक ऐसी ही खाद्य सामग्री ने धूम मचा रखी है। लोग इसे खरीदने उमड़ पड़ रहे हैं। भारी मांग के चलते ही आलम यह है कि इसके दाम 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुके हैं। बावजूद इसके लोग इसे बड़े चाव से खरीद रहे हैं। यह खाद्य सामग्री है जंगली भमोड़ी जिसे शहरी क्षेत्रों में मशरूम के नाम से जाना जाता है।
यह मशरूम जंगल की पहाड़ियों में स्वतः उग आती है। लोग इसे बड़े शौक से सब्जी बनाकर खाते हैं। भमोड़ी (Jungle Bhamodi) या मशरूम की सब्जी बनाकर खाने वाले शौकीन बताते हैं कि यह जंगल भमोड़ी पौष्टिक तो होती ही है, वहीं स्वादिष्ट भी होती है। ताप्ती नदी के तट पर स्थित वनांचल गांवों से आदिवासी वर्ग के लोग बड़ी तादाद में जंगली भमोड़ी को बेचने टोकरियों में भरकर शुक्रवार बाजार के दिन लाते हैं।
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इसे बेचने आने वाले आदिवासी बताते हैं कि जंगल में इन्हें खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। हालांकि मांग अच्छी होने से दाम भी अच्छे मिल जा रहे हैं और यह 500 रुपए किलो तक बिक जा रही है। जानकार बताते हैं कि इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसे आदिवासी धरती का फूल भी कहते हैं। यह नॉनवेज से भी ज्यादा स्वादिष्ट बनता है। इसलिए लोग इसे बड़े चाव से खरीदते हैं।