मैं हिन्दू हूँ,
हाँ ,मैं हिन्दू हों.

मेरा धरती से प्रथम प्रेम,
मैं आदि रहा,अनादि हूँ.
मैंने वृक्षों में देव तलाशे,
प्राण तलाशे निष्प्राणों में.
जल-थल-नभ को सम्मान दिया,
भगवन तराशा पाषाणों में.
मैंने श्वासों को अधिकार कहा,
जाना,परखा है स्थूल सदा.
कण के भी कण पर शोध मेरा
पहचाना मैंने मूल सदा.
मै तत्व बोध का सिन्धु हूँ.
हिन्दू हूँ, हाँ मैं हिन्दू हूँ.

ज्ञान दिया विज्ञान दिया,
मैंने आलौकिक ध्यान दिया.
वह स्वयं जगत में देव हुआ,
जिसने मुझको पहचान लिया.
मुझमें वेदों की ऋचा बही,
गीता का कर्म दिया मैंने.
मुझमें मानस की मर्यादा है,
रिश्तों का धर्म दिया मैंने.
मैं रहा जूझता अन्याय से ,
हर युग का रहा विजेता मैं.
मैं कालजयी हूँ कालों का,
हर कल का रहा प्रणेता मैं.
मैं दिग-दिगंत का बिन्दू हूँ.
हिन्दू हूँ,हाँ मैं हिन्दू हूँ.

मैं विभोर हूँ, शोर नहीं.
ब्रह्म-वृत्त हूँ,छोर नहीं.
हर विचार में आत्मसात हूँ,
मैं कोई कठिन कठोर नहीं.
मैंने वसुधा को कुटुम्ब कहा,
सबके सुख-स्वस्ति का मन्त्र दिया.
मैं रहा शांति का अग्रदूत,
मैंने पहला गणतंत्र दिया.
मैं विषपायी शंकर हूँ,
जन-मंगल लक्ष्य अटल मेरा,
मेरे घट-घट में अमृत है,
जग-पल्लव संकल्प अचल मेरा.
मैं घोर तिमिर में इंदु हूँ.
हिन्दू हूँ , हाँ मै हिन्दू हूँ.

मैंने तलवारों की मूठ पकड़,
बोलो कब मेरा विस्तार किया।
बोलो किसको नतमस्तक कर,
मैंने शर्तों पर प्यार दिया।
बोलो मेरी शाखायों में,
किस जगह नुकीला शूल मिला।
किस जगह बताओ पर्ण मेरा,
विषगन्धित भय अनुकूल मिला।
उलट-पलट इतिहास कहो,
मैं लड़ा कहाँ प्रतिशोधों में,
मैं निर्मल जल की धारा सा,
बहता आया अवरोधों में।
मैं अमर प्रेम रस बिंदु हूँ।
हाँ मैं हिन्दू हूँ
………….चौ.मदन मोहन समर…

मेरे काव्य संग्रह “समय समेटे साक्ष्य” से

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