When Thresher Became Cooler : किसान ने ठंडी हवा के लिए किया ऐसा देसी जुगाड़ कि लोग हो गए दीवाने, लेने लगे सेल्फी

• उत्तम मालवीय, बैतूल
जहां चाह, वहां राह… इसी मूल मंत्र के आधार पर पता नहीं कितने नए-नए आविष्कार हो चुके हैं। इन अविष्कारों में हमारा देसी दिमाग भी कहीं पीछे नहीं रहता है। कभी-कभी तो देसी जुगाड से ऐसे चमत्कार भी हो जाते हैं जिनकी कल्पना बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने भी शायद ही की हो। जिले में भी हुए एक ऐसे ही जुगाड़ की इन दिनों खासी चर्चा है। आलम यह है कि इस देसी जुगाड़ पर लोग इस कदर फिदा हुए कि खुद को सेल्फी लेने से नहीं रोक पाए।

चुभती, जलती गर्मी इन दिनों कहर बरपा रही है। गर्मी के इस दौर में हर कोई पंखे, कूलर और एसी के सहारे हैं। लेकिन, अगर ये तीनों ही साधन ना हो तो अगला विकल्प क्या हो सकता है? इस सवाल का जवाब बैतूल के एक गाँव में मिल गया है। जहां ग्रामीणों ने गर्मी से राहत का नया जुगाड़ खोज लिया है। यह जुगाड़ एक पन दो काज करता है। इस जुगाड़ के कूलर का नाम है थ्रेसर। जी हाँ, वही थ्रेसर जो आम तौर पर सभी किसान केवल कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, ये थ्रेसर कूलर का काम भी कर सकता है। ये लोगों को पहली बार मालूम चला।

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दरअसल बैतूल की मुलताई तहसील के प्रभातपट्टन में दोपहर के समय एक विवाह समारोह था। यहां गर्मी से राहत के लिए कूलर, पंखे लगाए गए थे लेकिन मेहमानों की संख्या के हिसाब से कूलर, पंखे कम पड़ गए। नतीजा ये हुआ कि चिलचिलाती धूप और गर्मी से बाराती बेहाल होने लगे। ऐसे में वही पुरानी कहावत एक बार फिर चरितार्थ हुई कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है।

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दुल्हन के परिवार वालों ने तत्काल एक नया जुगाड़ लगाया। खेत में खड़े थ्रेसर को शादी के पंडाल तक लाया गया और ट्रैक्टर की मदद से उसे चालू कर दिया गया। थ्रेसर से निकली तेज हवा ने अचानक ही वहां गर्मी से परेशान लोगों के चेहरे खिला दिए। थ्रेसर ने वो काम किया जो कूलर और पंखे भी नहीं कर सके थे। बस फिर क्या था, लोगों ने इस जुगाड़ के कूलर के सामने सेल्फी लेना शुरू कर दिया। देखें वीडियो…👇👇👇

वधु पक्ष के मुलताई निवासी आशु देशमुख ने बताया कि 3 घण्टे तक थ्रेसर चलाने के लिए केवल 10 लीटर डीजल की खपत होती है। इससे तेज ठंडी हवा निकलती है जो भीड़ भाड़ में ज्यादा से ज्यादा लोगों को राहत देती है। शादी समारोह में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्र के लोग शामिल हुए थे। जो कृषि कार्यों से जुड़े हैं और अधिकांश के पास थ्रेसर होता है। लेकिन पहली बार थ्रेसर को जुगाड़ का कूलर बनते लोगों ने देखा। बड़ी बात नहीं कि आने वाले समय में ग्रामीण अब इसी थ्रेसर को कूलर की तरह इस्तेमाल करते दिखें।

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