▪️अंकित सूर्यवंशी/सचिन बिहारिया
आमला/खेड़ली बाजार। अभी तक आपने ऐसे मंदिरों के बारे में ही सुना होगा जहां लोग खुद और अपने परिजनों व रिश्तेदारों के साथ जाते हैं। लेकिन, क्या आपने किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जहां लोग खुद तो जाते ही हैं, लेकिन अपने पालतू पशुओं को खासतौर से साथ ले जाते हैं। जाहिर है कि आपने ऐसे किसी मंदिर के बारे में आज तक नहीं सुना होगा। तो चलिए आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में जानकारी देते हैं।
यह अनूठा मंदिर बैतूल और छिंदवाड़ा जिले की सीमा पर छिंदवाड़ा जिले में स्थित है। श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र इस मंदिर को धनगौरी नागदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर देश भर के श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और विश्वास का संगम देखने को मिलता है।नागपंचमी पर यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
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धनगौरी नागदेव मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यहां पर अक्षय तृतीया के बाद से ही विशेष पूजा अर्चना का दौर शुरू हो जाता है। विवाह के उपरांत नवदंपती यहां पर अपनी मन्नत के अनुसार पूजा करने आते हैं। इसके साथ ही किसान अपने पशुधन को लेकर पूजा-अर्चना करने यहां पहुंचते हैं। इसे लेकर मान्यता यह है कि धनगौरी मंदिर में पूजा-अर्चना करने के उपरांत नाग देवता की कृपा दृष्टि सभी पर बनी रहती है।
इसलिए आते हैं किसान पशु लेकर
दरअसल, ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती-किसानी ही होता है। ऐसे में उन्हें बारह महीनों खेतों में आना-जाना पड़ता है। खेतों में अक्सर विषैले जीव जंतुओं के अलावा जहरीले सांप भी निकलते रहते हैं। जिनके डंसने से किसान अथवा उनके सहायक पशुओं की मौत हो सकती है। ऐसे में किसान इस नाग देवता के मंदिर में आकर यही प्रार्थना करते हैं कि वे (नागदेवता) उन्हें या उनके पशुओं को कोई नुकसान ना पहुंचाएं। मान्यता है कि नाग देवता की क्षेत्रवासियों पर विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है जिससे वर्ष भर फसल एवं पशुधन को कोई नुकसान नहीं होता।
श्रद्धालुओं की आस्था का है केंद्र
इसके अलावा मन्नत पूरी होने पर धनगौरी नागदेव मंदिर में मन्नतें पूरी करने का भी विशेष महत्व है। इस दौरान यहां जगह-जगह भंडारे प्रसादी का आयोजन भी किया जाता है। मोरखा के देवीसिंह रघुवंशी, राजेन्द्र सिंह पटेल, प्रवीण सिंह मैनवे ने बताया कि मध्य प्रदेश के साथ साथ आसपास के प्रदेशों के श्रद्धालुओं का भी वर्ष भर यहां आना जाना लगा रहता है। धनगौरी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना करवाने का भी महत्व है। इसके अलावा नागपंचमी, ऋषि पंचमी एवं महाशिवरात्रि पर्व पर भी काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में माथा टेकने पहुंचते हैं। धनगौरी नागदेव मंदिर से लोगों की विशेष आस्था जुड़ी है जिस कारण हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।
नागद्वारी मेले की यहां होती पहली पूजा
ग्राम मोरखा के वरिष्ठ समाजसेवी किशनसिंह रघुवंशी, सेवानिवृत्त शिक्षक कोमलसिंह सरोज, ग्राम पटेल रामकुमार पटेल ने बताया कि क्षेत्रवासियों के लिए यह प्रथम आस्था का केंद्र है। उन्होंने आगे बताया कि नागद्वारी मेले में जाने वाले श्रद्धालुओं की पूजा करने की प्रथम सीढ़ी नागदेव धनगौरी मंदिर को माना जाता है। वर्तमान में नागद्वारी मेले में जाने वाले श्रद्धालु नागदेव मंदिर पहुंच रहे हैं। बहुत से श्रृद्धालु नागद्वारी मेले से वापस लौटते समय भी नागदेव धनगौरी मंदिर माथा टेकने आते हैं।
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दो भागों में बंटा है यह मंदिर
फेसबुक पेज “आमला- शहर अपना सा” ने भी इस मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है। जिसके अनुसार बेल नदी के किनारे स्थित ये मंदिर अपने आप में अनोखा है। इस मंदिर को लेकर जनश्रुति को माने तो ये मंदिर दो भागों में बंटा हुआ है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां नागदेव विशाल रूप में विद्यमान हैं। मुख्य मंदिर में नागदेवता के धड़ और फन की पूजा होती है तथा वहां से करीब 700 मीटर दूर स्थित मंदिर में नागदेवता की पूछ की पूजा की जाती है। ग्रामीण जानकारी देते हैं कि यहां पूजा तो सदियों से होते आ रही है पर इस मंदिर का निर्माण 1916 में हुआ था।
कैसे पहुंचे धनगौरी नागदेव मंदिर
यह मंदिर मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के आमला शहर से 44 किलोमीटर दूर आमला-बोरदेही टू लेन मार्ग पर स्थित है। इसी तरह खेड़ली बाजार-मोरखा के रास्ते जाने पर यह आमला से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आमला में छोटे रूप में दिखने वाली बेल नदी का यहां पाट बहुत बड़ा हो जाता है। यहीं से बेल नदी छिंदवाड़ा जिले में प्रवेश करती है और वारठाना-वोमलिया गांव होते हुए कन्हान नदी में मिल जाती है। बेलनदी के उद्गम स्थल ‘पंखा’ पर भोपाल-नागपुर फोरलेन पर स्थित मंदिर को भी नागद्वार मंदिर से जोड़कर देखा जाता है।