हमारे मध्यप्रदेश में भी हैं एक अयोध्या, जहां रग-रग में बसे हैं प्रभु श्रीराम


बैतूल। बुंदेलखंड की बेहद खूबसूरत, रमणीक और दिलचस्प जगह में से एक झांसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर टीकमगढ़ जिले से अलग हुए निवाड़ी जिले में स्थित ऐतिहासिक नगर है ओरछा। अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है। जिस तरह अयोध्या के रग-रग में राम हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं। 16 वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं थीं। ओरछा का अयोध्या से करीब 600 वर्ष पुराना नाता है।

प्रभु श्रीराम तीन शर्तों पर चलने को हुए थे राजी
पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम की उपासक थीं। इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव द‍िया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली। तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया क‍ि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। इस पर महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं। वहां 21 दिन उन्होंने तप किया। इसके बाद भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। कहा जाता है क‍ि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए। तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं। पहली मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा। दूसरी ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद क‍िसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी। तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी। महारानी ने ये तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली। इसके बाद ही रामराजा ओरछा आ गए। तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं। राम के अयोध्या और ओरछा, दोनों ही जगहों पर रहने की बात कहता एक दोहा आज भी रामराजा मन्दिर में लिखा है कि –
रामराजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास।

रसोई से नहीं हिली रामराजा की मूर्ति
रामराजा के लिए ओरछा में भव्य स्वर्णिम चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया गया जिसमें रानी के द्वारा अयोध्या से पैदल चलकर लाई मूर्ति की स्थापना होने वाली थी। रात्रि हो जाने के कारण रानी ने महल की रसोई में रामराजा की मूर्ति रख दी। मगर पहली शर्त के मुताबिक ‘मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा उठूंगा नहीं।’ अंततः रानी की लाख मिन्नतों के बावजूद रामराजा की मूर्ति रसोई से नहीं हिल सकी। अंत में रसोई को ही मंदिर का रूप दिया गया जो कि वर्तमान में है एवं चतुर्भुज मंदिर में दूसरी मूर्ति की स्थापना की गई। ओरछा के राम श्रद्धा चाहते हैं। इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर त्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था। इससे यह सिद्ध हुआ राम भक्तों के भावों में बसते हैं, भवनों की भव्यता में नहीं।

राजाराम को दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर
संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमीं को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था क‍ि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी। तब यह बुन्देलखण्ड की ‘अयोध्या’ बन गया। ओरछा के रामराजा मंदिर की एक और खासियत है। एक राजा के रूप में विराजने की वजह से उन्हें चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया जाता है। रामराजा की रात्रि में होने वाली शयन आरती के बाद जोत को पास ही बजरंगबली के मंदिर में ले जाया जाता है। ओरछा नगर के परिसर में यह गार्ड ऑफ ऑनर रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को नहीं दिया जाता, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को भी नहीं।

विदेशी पर्यटक भी आते हैं ओरछा
ओरछा में रामराजा मंदिर भगवान राम और जानकी जी की मूल प्रतिमाओं के लिए उत्तर भारत में ओरछा का विशेष स्थान है। यही वजह है कि ओरछा में प्रतिवर्ष लाखों धर्म जिज्ञासु स्वदेशी एवं विदेशी पर्यटक ओरछा की पुरातात्विक महत्व के खूबसूरत महलों, विशाल किले का दीदार करने आते हैं। यहां रामराजा मंदिर के अतिरिक्त शीश महल, जहांगीर महल, रायप्रवीण महल, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, बेतवा नदी के तट पर राजा की छतरियां, फूल बाग, सुंदर महल, लक्ष्मी नारायण मंदिर और नदी किनारे के जंगल में घूमने वाले जानवरों की अटखेलियां समेत प्राचीन काल की भव्य इमारतें मौजूद हैं। संध्या काल में महल में होने वाला लाइट एंड साउंड शो यहां का खास है जिसमें पूरे ओरछा का इतिहास बताया जाता है। साथ ही बेतवा नदी में बोटिंग और राफ्टिंग का लुप्त भी उठा सकते हैं। रामराजा मंदिर के आसपास ही होमस्टे एवं होटले उपलब्ध है।

कैसे पहुंचे ओरछा
ओरछा झांसी से तकरीबन 18 किलोमीटर दूर है। झांसी से पैसेंजर ट्रेन के माध्यम से एवं बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। मुख्य स्टेशन झांसी के लिए दिल्ली और भोपाल से ट्रेन के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। ओरछा का नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जो 163 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, वाराणसी और आगरा से नियमित फ्लाइटों से जुड़ा है। ओरछा झांसी-खजुराहो सड़क मार्ग पर स्थित है। नियमित बस सेवाएं ओरछा और झांसी को जोड़ती हैं। दिल्ली, आगरा, भोपाल, ग्वालियर और वाराणसी से यहां से लिए नियमित बसें चलती हैं।

वर्तमान में क्यों चर्चा में है ओरछा
निवाड़ी जिले की पृथ्वीपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव में किस्मत आजमाने दोनों ही पार्टी के नेताओं का ओरछा स्थित रामराजा सरकार से आशीर्वाद लेने का सिलसिला लगा हुआ है। कद्दावर नेताओं सहित मंत्रीद्वय भी यहां पहुंच कर रामराजा को अर्जी लगा रहे हैं।
@यात्रा वृत्तांत: लोकेश वर्मा

उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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