लाखों वीरों ने अपनी आहुतियां दी, तब हमें मिली स्वाधीनता: माहेश्वरी

  • उत्तम मालवीय, बैतूल © 9425003881
    स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पं. मदनमोहन मालवीय की जयंती के अवसर पर भारत भारती आवासीय विद्यालय में शिक्षक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में वक्ताओं ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर व्याख्यान दिये।
    कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों में सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मध्य भारत प्रान्त भोपाल के संगठन मंत्री निखिलेश माहेश्वरी, मप्र शिक्षक संघ के प्रान्तीय महामंत्री और पतंजलि संस्कृत बोर्ड के सहायक संचालक छतरवीर सिंह राठौर, जनजाति शिक्षा के राष्ट्रीय सहसंयाजक बुधपाल सिंह ठाकुर, नर्मदापुरम विभाग के समन्वयक सुनील दीक्षित, मप्र शिक्षक संघ के संभागीय अध्यक्ष ओमप्रकाश रघुवंशी, महर्षि अरविन्द शिक्षा समिति के अध्यक्ष कश्मीरीलाल बत्रा, भारत भारती शिक्षा समिति के सचिव मोहन नागर, कोषाध्यक्ष मुकेश खण्डेलवाल उपस्थित थे।

    अपने प्रस्ताविक भाषण में भारत भारती शिक्षा समिति के सचिव श्री मोहन नागर ने सभी का अभिनन्दन करते हुए कहा कि इस शिक्षक सम्मेलन का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन और इसकी बारीकियों पर प्रकाश डालना है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत भारत रत्न महामना पं. मदनमोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटलबिहारी बाजपेयी की जयंती के अवसर आज हम एकत्रित हुए हैं। श्री नागर ने कहा कि देश के संचालन में नीति निर्माण बहुत आवश्यक तत्व है। शिक्षा का जीवन में महत्व हम सभी जानते हैं। भारत की शिक्षा के संबंध में समय समय पर नीतियों का निर्माण हुआ, वे लागू भी हुईं किन्तु ये नीतियाँ समाज और देश में वह परिवर्तन नहीं ला पाईं जिससे हम पूर्ण विकसित श्रेणी में आ सकें। इन शिक्षा नीतियों के क्रियान्वयन के बाद भी देश में बेरोजगारी, अशिक्षा आदि समस्यायें बनी रहीं, जिसके परिणामस्वरूप हम विश्वपटल पर पिछड़ते गये। इसके बाद आवश्यकता महसूस हुई ऐसी शिक्षा नीति की जिसमें भारत की आत्मा के दर्शन हो सकें। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में हो, हमारे निकट के वातावरण से परिमार्जित होकर शिक्षा नीति का निर्माण हो। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर 29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू कर दिया गया। इस शिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति और मूल्यों का विस्तार से चिंतन किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत भारती परिसर में आधुनिक गुरूकुल के दर्शन होते हैं और यहाँ शिक्षा के साथ साथ सामाजिक सरोकार के विभिन्न उपक्रम जिनमें वर्षा जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण गौ आधारित कृषि, जैविक कृषि और इसके प्रशिक्षण, औद्योगिक और व्यवसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि वर्षभर संचालित होते हैं। ऐसे वातावरण में शिक्षा से जुड़ा ये अनूठा आयोजन है।

    अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मप्र शिक्षक संघ के प्रान्तीय महामंत्री छतरवीर सिंह राठौर ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को देश की आत्मा कहा। उन्होंने कहा कि आज से 200 वर्ष पूर्व भारत में शिक्षा का प्रतिशत 100 था, किन्तु सन् 1947 में हमारे देश का साक्षरता का प्रतिशत घट कर मात्र 12 प्रतिशत हो गया। यह तत्कालीन शिक्षा नीतियों का ही परिणाम था। इस काल में शिक्षा नीतियों के निर्माण में समाज की उपेक्षा की जाती थी। शिक्षा केन्द्रों का संचालन जनता के हाथ में न होकर सरकार के हाथों में होता था। सन 1835 में लार्ड मैकाले ने शिक्षा का अधिनियम लागू किया जिसमें भारतीय संस्कृति और परंपराओं की अवहेलना कर इसकी जड़े कमजोर करने का प्रयास किया गया। रिणामस्वरूप शिक्षा की भाषा अंग्रेजी हो गई जो कि पूर्ण रूप से अव्यवहारिक है। शिक्षा की इसी दशा को देखते हुए वर्ष 2018 में 400 शिक्षा कुलपतियों और शिक्षाविदों के सुझावों और प्रयोगों से सुसज्जित शिक्षा का नवीन कलेवर तैयार किया गया। इस शिक्षा नीति के निर्माण में लगभग 3 करोड़ शिक्षा विशेषज्ञ भारतीयों से सुझाव लिए गये और अंतत: 29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया। इस शिक्षा नीति में उन सभी पक्षों का समावेश किया गया है जो हमें भारतीयता और अपनी आत्मा से परिचित करायेगें।

    सम्मेलन के मुख्य अतिथि निखिलेश माहेश्वरी ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के विषय में विस्तार से बताते हुए कहा कि स्वतंत्रता की आवश्यकता हमें केवल स्वछन्द अपनी बात रखने या मनमानी करने के लिए महसूस नहीं हुई। हमें देश को प्रत्येक क्षेत्र में बेहतर करने की आवश्यकता थी। श्री माहेश्वरी ने कहा कि भारत कैसा था और हमें कैसा भारत चाहिए, इसके लिए जनसामान्य को भी प्रयास करने होंगे। हमारी शिक्षा नीतियाँ हमारे विकास में बाधक सिद्ध हुई तो इनमें सुधार की आवश्यकता ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जन्म दिया। श्री माहेश्वरी ने कहा कि देश अपनी विरासत से सीखता है। हमारा संघर्ष अंग्रेजी शासन से पूर्व ही प्रारंभ हो गया था। स्वाधीनता कोई आकाशीय घटना नहीं जो सहज ही हो गयी हो। इसके लिए लाखों देशाभिमानी वीरों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी तब हमें आजादी मिली। नई शिक्षा नीति के विशेषताओं के बारें में श्री माहेश्वरी ने कहा कि हमारी प्राचीन गुरूकुल शिक्षा पद्धति के समान ही इस नई शिक्षा नीति में हमारे मानवीय मूल्यों, संस्कृति का ध्यान रखा गया है। आसपास के वातावरण से परिमार्जित और सुसंस्कृत यह शिक्षा नीति अवश्य ही भारत को गुरूता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।

    कार्यक्रम में मप्र शिक्षक संघ के पदाधिकारियों में संभागीय सचिव नवीन पटेल, जिला अध्यक्ष दिलीप सिंह गीते, तहसील अध्यक्ष संतोष शर्मा, विकासखण्ड अध्यक्ष नीरज सोनी, जिला सचिव कोमलसिंह कुर्मी इटारसी, जिला कोषाध्यक्ष मालक पटेल, कार्यकारिणी सदस्य सुन्दरलाल उमरिया, विठ्ठलराव चरपे, धनंजय धाडसे, विक्रम उपाथे, सुनील कवड़कर, राजेश दाते, गोकुल झरबडे, सुरेश लोधी, अमोल पानकर और प्रशासकीय अधिकारियों में संकुल प्राचार्य एसके पचोरी, वामनराव धोटे, राजेन्द्र दुबे, एनपी खण्डाले, अजय शर्मा, मधुकर राव माकोड़े विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जीतेन्द्र तिवारी ने और आभार प्रदर्शन नरेश लहरपुरे ने किया।

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