यहां विराजी हैं राजसत्ता की देवी, बड़े-बड़े नेता भी टेकते हैं मत्था


हमारे देश में मां दुर्गा के कुछ ऐसे चमत्‍कारिक मंदिर हैं, जिनके आगे विज्ञान भी दांतों तले उंगली दबा लेने पर मजबूर है। इन्‍हीं में से एक है मध्‍य प्रदेश का ऐसा सिद्धपीठ, जहां मां की अनोखी कृपा न सिर्फ भक्‍तों पर बरसती है बल्कि भक्‍त यहां खुद भी तीन प्रहर में मां के अलग-अलग स्‍वरूपों के दर्शन करते हैं। मां के आर्शीवाद से शत्रु की वाणी मूक हो जाती है, रंक भी राजा हो जाता है, प्रज्ज्वलित अग्नि ठंडी पड़ जाती है, क्रोधी का क्रोध शांत हो जाता है, दुर्जन सज्जन बन जाता है, सर्वत्र शत्रु भी जड़वत हो जाते है। यही नहीं जब भी देश पर किसी बड़ी विपत्ति का साया पड़ा है तो देवी मां देशवासियों की रक्षा करती हैं। राजनीतिज्ञों ने यहां पर गुप्‍त पूजा करके विजय प्राप्‍त की है। इसीलिए ‘राजसत्ता’ की देवी भी इसे कहते हैं।
खिड़की से होते हैं मां के दर्शन
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा सिद्धपीठ है। इसकी स्‍थापना 1935 में की गई थी। यहां मां के दर्शन के लिए कोई दरबार नहीं सजाया जाता बल्कि एक छोटी सी खिड़की है, जिससे अमीर हो या गरीब को मां के दर्शन का सौभाग्‍य मिलता है। यूं तो हर समय ही यहां भक्‍तों का मेला सा लगा रहता है, लेकिन नवरात्र में मां की पूजा का विशेष फल प्राप्‍त होता है। भक्त यहां पीले वस्‍त्र धारण करके, मां को पीले वस्‍त्र और पीला भोग अर्पण करते हैं। ट्रस्ट की ओर से शुद्ध घी से बने पीले लड्डू प्रसाद स्वरूप भक्तो को प्राप्त होते है।

बेहद चमत्‍कारी है मां का धाम
मां पीतांबरा देवी तीन प्रहर में अलग-अलग स्‍वरूप धारण करती हैं। यदि किसी भक्‍त ने सुबह मां के किसी स्‍वरूप के दर्शन किए हैं तो दूसरे प्रहर में उसे दूसरे रूप के दर्शन का सौभाग्‍य मिलता है। तीसरे प्रहर में भी मां का स्‍वरूप बदला हुआ दिखता है। मां के बदलते स्‍वरूप का राज आज तक किसी को नहीं पता चल सका। इसे चमत्‍कार ही माना जाता है। देवी के इस स्‍वरूप को शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इसके अलावा यह राजसत्‍ता की भी देवी हैं। यहां राजसत्‍ता की इच्‍छा रखने वाले भक्‍त मां की गुप्‍त पूजा करवाते हैं।
महाभारत काल का है शिवलिंग
मंदिर प्रांगण में स्थित वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है। सावन के सोमवार और शिवरात्रि पर यहां दूर-दूर से भक्‍त शिवलिंग के दर्शनों के लिए आते हैं।

भारत–चीन युद्ध के समय हुआ था यज्ञ
साल 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध शुरू हुआ था तो मां पीतांबरा सिद्धपीठ में पुजारी बाबा ने फौजी अधिकारियों और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध करने पर देश की रक्षा के लिए मां बगुलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। इसका परिणाम यह रहा कि युद्ध के 11वें ही दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं।
आज भी मौजूद है वह यज्ञशाला
भारत-चीन युद्ध के दौरान पूजा के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी परिसर में स्‍थापित है। जब देश पर किसी तरह की परेशानी आती है तो मंदिर में गोपनीय रूप से मां बगुलामुखी जो कि मां पीतांबरा का ही स्‍वरूप हैं। उनकी पूजा की जाती है। बताया गया कि चीन के अलावा 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 2000 में कारगिल में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी मां बगुलामुखी की गुप्‍त साधना की गई थी। इसका ही परिणाम रहा कि दुश्‍मनों की हार हुई।

इन्‍होंने लिया है मां का आशीर्वाद
मंदिर में ऐसे तो राजनीतिज्ञों का जमावड़ा लगा ही रहता है। दिग्गजों में अमित शाह, योगी आदित्‍यनाथ, राहुल गांधी, शिवराज सिंह चौहान सहित गत दिनों प्रियंका गांधी ने भी यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की है।
पीतांबरा माता दतिया कैसे पहुंचे
पीतांबरा माता का विशाल मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया शहर में स्थित है जो कि झांसी शहर से मात्र 40 किलोमीटर दूर स्थित है। मुंबई से होकर दिल्ली गुजरने वाली लगभग सभी गाड़ियां झांसी स्टेशन पर रूकती हैं। यहां आकर बस या टैक्सी से दतिया पहुंचा जा सकता है। हवाई यात्रा के लिए यहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर ग्वालियर हवाई अड्डा भी है।

@यात्रा वृत्त: लोकेश वर्मा

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