चिचोली में घोड़े को हुई लाइलाज ग्लैंडर्स बीमारी, इंजेक्शन देकर सुलाया मौत की नींद

  • उत्तम मालवीय, बैतूल © 9425003881

    बैतूल जिले के चिचोली नगर में एक घोड़े को लाइलाज ग्लैंडर्स बीमारी होने का मामला सामने आया है। इस बीमारी की पुष्टि होने पर घोड़े को मरफी किलिंग प्रक्रिया के तहत पशु चिकित्सकों के दल ने पहले तो मौत की नींद सुलाया और फिर प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में उसका विधिवत अंतिम संस्कार कर दिया गया है। किसी की शादी हो, बर्थडे हो या फिर खुशी का कोई भी मौका वह शानदार डांस करता था। उसके डांसिंग हुनर के चलते ही वह लोगों को खास पसंद था और डांसर नाम से ही यह घोड़ा जाना भी जाता था। उसकी अकाल मौत से लोगों को भी खासा दुःख है।

    तीन घण्टे तक चली मौत देने की प्रक्रिया

    प्राप्त जानकारी के अनुसार चिचोली नगर के वार्ड क्रमांक 15 के रहवासी दिलीप राठौर के पालतू घोड़े में लाइलाज बीमारी ग्लैंडर्स की पुष्टि होने पर प्रशासनिक आदेश के तहत 2 दिसंबर को दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक चली प्रक्रिया के तहत 5 वर्षीय डांसर को 4 मरफी किलिंग इंजेक्शन लगाए गए। घोड़े की मौत हो जाने के बाद उसका अंतिम संस्कार तहसीलदार नरेश सिंह राजपूत, पुलिस प्रशासन और नगरीय प्रशासन की मौजूदगी में जमीन में 3 मीटर गड्ढा खोदकर दफना दिया गया।

    लक्षण नजर आने पर लिए थे सैम्पल

    चिचोली विकासखंड के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर केसी तवंर के अनुसार पशु पालक ने डेढ़ महीने पहले जिला पशु अस्पताल में बीमार घोड़े का इलाज करवाया था। पशु चिकित्सक ने घोड़े में नजर आए लक्षणों के आधार पर घोड़े के ब्लड सैंपल लेकर इसकी रिपोर्ट चिचोली पशु अस्पताल को भेजी गई थी। इसके बाद दो बार घोड़े के ब्लड के सैंपल लेकर हिसार स्थित प्रयोगशाला में सैम्पल जांच के लिए भेजे गए थे। इसमें घोड़े में ग्लैंडर्स की पुष्टि स्पष्ट हो गई थी। इसके बाद नियमानुसार जिला कलेक्टर के आदेश के बाद गुरुवार घोड़े को कलिंग प्रक्रिया के तहत 4 दर्द रहित इंजेक्शन दिए गए। इसके दस मिनट बाद डांसर नाम के इस घोड़े ने दम तोड़ दिया। उसकी मौत होने पर विधिवत रूप से घोड़े को जमीन में दफनाया गया है।

    यह है ग्लैंडर्स बीमारी और इसके प्रावधान

    डॉक्टर केसी तंवर ने बताया कि ग्लैंडर्स एंड फायसी एक्ट के 1899/13 एक्ट के तहत पशु पालक को 25000 रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। ब्रिटिश कालीन ब्लेजर एंड फाइसी 1899/13 एक्ट के तहत ब्रिटिश काल में इस प्रक्रिया के तहत मृत घोड़े के मालिक को 50 रुपए का मुआवजा दिया जाता था। ग्लैंडर्स एक जेनेटिक बीमारी है। यह ज्यादातर घोड़े, गधों और खच्चरों में होती है। इस बीमारी से पीड़ित पशु को मारना ही पड़ता है। अगर कोई पशुपालक इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आता है तो ये मनुष्यों में भी फैल जाती है। लाइलाज होने के कारण इस बीमारी से ग्रसित पशु को यूथेनेशिया दिया जाता है। इसके बाद पशु गहरी नींद में चला जाता है। लगभग दस मिनट में नींद के दौरान ही उसकी दर्द रहित मौत हो जाती है।

  • Related Articles

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *