घर से मंदिर तक हुए जगमग, विधि विधान से हुआ तुलसी विवाह


चिचोली। प्रबोधिनी एकादशी पर सोमवार को घर-घर तुलसी का पूजन हुआ। विधि-विधान से मां तुलसी का विवाह संपन्न कराया गया। महिलाओं ने सोलह श्रृंगार कर विधि-विधान से पूजन किया। घर से लेकर मंदिरों तक दीपों से जगमग हो उठे। महिलाओं ने प्रबोधिनी एकादशी पर मां तुलसी के पूूजन को लेकर तैयारी की। पंडित वशिष्ट दुबे ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के बीच श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु शयन कक्ष से उठते हैं। देवउठनी एकादशी पर फिर एक बार पूरा शहर रोशनी से जगमगाया था तो घरों में भी शाम से ही दीप जले और उत्साह का माहौल नजर आया। नगरवासियों ने आंगन में शादी की तरह गन्ने के मंडप सजाकर भगवान शालिग्राम और तुलसी का रीति-रिवाज के साथ विवाह संपन्न किया। विशेष पूजन के बाद पटाखे और आतिशबाजी चलाई। देवउठनी एकादशी पर देर शाम तक बाजार में फूल, बेर, भाजी, आंवला एवं गन्ने की दुकान सजी रही। इसके साथ शुभ कार्य शुरू हो गए हैं। इस अवसर पर छतों पर झिलमिल लाइटिंग, आंगन में सजे गन्ने से मंडप और विवाह की तैयारियों में लोग जुटे रहे। महिलाएं रंगोली सजा रही थी, तो कोई पूजा के लिए तैयार हो रहा था, बच्चे भी आतिशबाजी के लिए उत्साहित थे, कुछ ऐसा ही नजारा देवउठनी एकादशी पर नजर आया। देवउठनी एकादशी पर नगर सहित ग्रामीण अंचलों में घर-घर तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया गया। उस मंडप में तुलसी और सालिगराम की प्रतिमा रखकर विवाह मंत्रों के जयघोष के साथ विवाह की रस्म हुई। इस दौरान भगवान को बेर, भाजी, आंवला सहित विभिन्न प्रकार के नया, अनाज, फल, मिठाई आदि अर्पित किए गए। इसके पहले घरों में क्षीरसागर में विश्राम कर रहे भगवान विष्णु को बेर भाजी आंवला, उठो देव सांवला के जयघोष, संगीतमय संकीर्तन के साथ उठाया गया।

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