♦ पं. मधुसूदन जोशी, भैंसदेही (बैतूल)
Satyanarayan Vrat Katha : किसी भी शुभ काम से पहले या मनोकामनाएं पूरी होने पर सत्यनारायण व्रत की कथा सुनने का विधान है। सनातन धर्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने श्री सत्यनारायण कथा का नाम न सुना हो। इस कथा को सुनने का फल हजारों सालों तक किए गए यज्ञ के बराबर माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक ऐसा माना गया है कि इस कथा को सुनने वाला व्यक्ति अगर व्रत रखता है तो उसके जीवन के दुखों को श्री हरि विष्णु खुद ही हर लेते हैं। स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान सत्यनारायण श्री हरि विष्णु का ही दूसरा रूप हैं। इस कथा की महिमा को भगवान सत्यनारायण ने अपने मुख से देवर्षि नारद को बताया है।
पूर्णिमा के दिन इस कथा को सुनने का विशेष महत्व है। कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत प्रभावशाली माना गया है। जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं, वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें। इससे विशेष लाभ होगा।
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इस पेड़ के नीचे पूजन से उत्तम फल (Satyanarayan Vrat Katha)
पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं। केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है। भोग में पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल विशेष रूप से शामिल करें।
किसी भी दिन सुनी जा सकती कथा (Satyanarayan Vrat Katha)
सिर्फ पूर्णिमा को ही नहीं, परिस्थितियों के मुताबिक किसी भी दिन कथा सुनी जा सकती है। बृहस्पतिवार को कथा सुनना विशेष लाभकारी होता है। भगवान तो बस भाव के भूखे हैं। मन में उनके प्रति अगर सच्चा प्रेम है तो कोई भी दिन हो प्रभु की कृपा बरसती रहेगी।
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मनोकामनाओं की होती है पूर्ति (Satyanarayan Vrat Katha)
इस कथा के प्रभाव से खुशहाल जीवन, दाम्पत्य सुख, मनचाहे वर-वधु, संतान, स्वास्थ्य जैसी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। अगर पैसों से जुड़ी कोई समस्या है तो ये कथा किसी संजीवनी से कम नहीं है। तो अब जब भी मौका मिले, भगवान की कथा सुनें और सुनाएं।
श्री सत्यनारायण की पूजन विधि (Satyanarayan Vrat Katha)
श्री सत्यनारायण का पूजन महीने में एक बार पूर्णिमा या संक्रांति को या किसी भी दिन या समयानुसार किया जा सकता है। सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य के महत्व को बताता है। इस दिन स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। माथे पर तिलक लगाएं। अब भगवान गणेश का नाम लेकर पूजन शुरु करें।
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