
MP Soyabean Varieties: सोयाबीन की बुवाई से पहले जान लेना चाहिए कि सबसे अच्दी किस्म कौन-सी हैं। सोयाबीन बुवाई का समय आने वाला है। भारत में इसकी बुवाई मानसून के आते ही शुरू हो जाती है। इसे देखते हुए किसानों को सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की जानकारी होनी जरूरी है ताकि वे इन किस्मों में से अपने क्षेत्र के अनुकूल किस्म का चयन करके समय पर सोयाबीन की बुवाई कर सकें। भारत में सोयाबीन खरीफ की फसल के अंतर्गत आती है। भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में होती है। मध्य प्रदेश का सोयाबीन उत्पादन में 45 प्रतिशत है। जबकि सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र का 40 प्रतिशत हिस्सा है। बता दें कि भारत में सोयाबीन का 12 मिलियन टन उत्पादन होता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको सोयाबीन की टॉप 10 उन्नत किस्मों की जानकारी दे रहे हैं।

सोयाबीन की उन्नत किस्में (MP Soyabean Varieties)
सोयाबीन की एमएसीएस 1407 किस्म
सोयाबीन की एमएसीएस 1407 नाम की यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है और इसके बीज वर्ष 2022 के खरीफ के मौसम के दौरान किसानों को बुवाई के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 39 क्विंटल का पैदावार देती है और यह गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों के लिए प्रतिरोधी किस्म है। इसका मोटा तना, जमीन से ऊपर (7 सेमी) फली सम्मिलन और फली बिखरने का प्रतिरोधी होना इसे यांत्रिक कटाई के लिए भी उपयुक्त बनाता है। यह किस्म पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।
सोयाबीन की यह किस्म बिना किसी उपज हानि के 20 जून से 5 जुलाई के दौरान बुआई के लिए अत्यधिक अनुकूल है। यह इसे अन्य किस्मों की तुलना में मानसून की अनिश्चितताओं का अधिक प्रतिरोधी बनाता है। इस किस्म को तैयार होने में बुआई की तारीख से 104 दिन लगते हैं। इसमें सफेद रंग के फूल, पीले रंग के बीज और काले हिलम होते हैं। इसके बीजों में 19.81 प्रतिशत तेल की मात्रा, 41 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है।
सोयाबीन की जेएस 2034 किस्म (MP Soyabean Varieties)
इस किस्म की बुवाई का उचित समय 15 जून से 30 जून तक का होता हैं। सोयाबीन की इस किस्म में दाने का रंग पीला, फूल का रंग सफेद तथा फलिया फ्लैट होती है। यह किस्म कम वर्षा होने पर भी अच्छा उत्पादन देती है। सोयाबीन जेएस 2034 किस्म का उत्पादन करीब एक हेक्टेयर में 24-25 क्विंटल तक होता हैं। फसल की कटाई 80-85 दिन में हो जाती हैं। इस किस्म की बुवाई के लिए बीज मात्रा 30-35 किलों बीज प्रति एकड़ पर्याप्त हैं।

सोयाबीन की प्रताप सोया-1 (आरएयूएस 5) किस्म
सोयाबीन की ये किस्म 90 से 104 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में तेल की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें 40.7 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। सोयाबीन की इस किस्म के फूल बैंगनी होते हैं। जबकि बीज पीले होते हैं। ये किस्म गर्डल बीटल, स्टेम फ्लाई तथा डिफोलीएटर के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। यह किस्म उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए अच्छी बताई गई है।
सोयाबीन की एमएयूएस 81 (शक्ति) किस्म
सोयाबीन की ये किस्म 93-97 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 33 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 20.53 प्रतिशत होती है तथा 41.50 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इस किस्म के पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। फूलों का रंग बैंगनी होता है तथा इसके बीज पीले आयताकार होते हैं। यह किस्म मध्य क्षेत्र के लिए उपयुक्त पाई गई है।
सोयाबीन किस्म जे.एस. 9305 (JS 9305)
सोयाबीन की यह नवीनतम किस्म जे.एस. 93-05 अभी हाल ही में अधिसूचित होकर जारी की गई है। जिसका पंजीयन क्रमांक 296022 है। यह किस्म जे.एस. 335 की तुलना में लगभग एक सप्ताह पूर्व पककर तैयार हो जाती है। इसकी अवधि लगभग 85-90 दिवस है तथा इसकी उत्पादन क्षमता शीघ्र पकने वाली अन्य किस्मों की तुलना में सबसे अधिक है और जे.एस. 335 के बराबर है।
अतः यह किस्म पूर्व में प्रचलित शीघ्र पकने वाली अन्य किस्मों को विस्थापित करने में सक्षम है। इस किस्म के दानों का आकार मध्यम, बोल्ड, रंग गहरा पीला आकर्षक चमकदार, काली नाभि, 100 दानों का वजन 12-13 ग्राम, अंकुरण क्षमता अत्यधिक 90 से 95 प्रतिशत तक।
इस (soybean variety) की पत्तियाँ हरी, नुकीली लम्बी, फूलों का रंग बैंगनी तथा आधे फूल आने की अवधि 30-35 दिवस, फलियाँ बनने की अवधि 55 दिवस। अर्द्ध सीमित वृद्धि वाला मध्यम ऊँचाई का पौधा। तना व फलियाँ रोए रहित। फलियाँ पकने पर गहरे भूरे रंग की हो जाती है। फलियों में चार दाने वाली फलियों की संख्या काफी होती है। इसकी फली में चटखने की समस्या लगभग नहीं के बराबर होती है। पौध की ऊँचाई अच्छी होने से हार्वेस्टर से कटाई के लिए उपयुक्त यह किस्म जड़ सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी पाई गई है।