Betul News: कभी इस हवेली से चलती थी हुकूमत, यहीं होता था विवादों का हल, थर थर कांपते थे बदमाश
Betul News: Once the government used to run from this mansion, disputes used to be resolved here, miscreants used to tremble.
▪️ मनोहर अग्रवाल, खेड़ी सांवलीगढ़
Betul News: हर तरह की व्यवस्थाओं पर नियंत्रण के लिए पुलिस, प्रशासन और कोर्ट कचहरी का इंतजाम तो अब हमें दिखता है, लेकिन पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। अंग्रेजों के रहते हुए और उनके जाने के बाद भी लंबे समय तक इन सभी व्यवस्थाओं पर नियंत्रण का दारोमदार अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न लोग निभाते रहे थे।
इनका महत्व, मान्यता और रुआब ऐसा था कि वे जहां रहते या जहां से कार्य करते थे वही सत्ता केंद्र माना जाता था। इस केंद्र से एक जो फरमान जारी हो गया या जो निर्णय हो गया, उसकी खिलाफत करने की किसी की मजाल नहीं होती थी।
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मध्य प्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय से करीब 11 किलोमीटर दूर ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ में भी किसी जमाने में ऐसा ही एक केंद्र था। यह केंद्र था ग्राम में स्थित मालगुजारी की हवेली। यह हवेली इस पूरे क्षेत्र की व्यवस्थाओं पर नियंत्रण का कार्य करती थी।
इसके साथ ही क्षेत्र में सौहार्द स्थापित करने के अलावा गरीब परिवारों और जरूरतमंदों को सहयोग कर उनके जीवन में खुशियां बिखेरने का काम भी करती थी। यही कारण था कि यह हवेली सत्ता के केंद्र के साथ ही उम्मीदों और आशाओं का केंद्र भी मानी जाती थी।
यह हवेली थी गांव के मालगुजार गुणवंत सिंह परिहार की। वे पूरे गांव को एक सूत्र में बांधकर चलते थे। उस दौरान ग्रामीणों के मध्य वाद विवाद का समझौता इसी हवेली में होता था। स्थिति यह थी कि उस समय क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के लोग इस हवेली से थर थर कांपते थे और भूलकर भी इस ओर आने की जुर्रत नहीं कर पाते थे।
मालगुजार गुणवंत सिंह के निधन के बाद बड़े भैया युवराजसिंह परिहार ने उनकी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। अपने जीवनकाल में उन्होंने हर जरूरतमंद को न्याय दिलाया और लंबे अरसे तक अपनी जिम्मेदारियों को निभाया। यही नहीं जनसेवा करते हुए गरीब परिवारों की बेटियों के विवाह भी करवाए।
स्वर्गीय युवराजसिंह परिहार, स्वर्गीय माधव गोपाल नासेरी (इन्हें खेड़ी का गांधी कहा जाता था) और परिहार परिवार की माँ कर्माबाई ने भी खेड़ी वासियों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे भी पूरे ग्राम और क्षेत्र में सम्मानीय थीं। उनका भी अपना खेड़ी वासियों के प्रति प्रेम और भाईचारा था।
इस हवेली को अवार भी कहते थे, जहाँ स्वर्गीय युवराज सिंह परिहार (बड़े भैया) के साथ प्रतिदिन जनसुनवाई हुआ करती थी। लोग अपनी समस्या को लेकर यहां आते थे। यहां बड़े भैया उन्हें ऐसे समझा कर घर भेजते थे कि वे दोबारा विवाद नहीं करते थे।
बताया जाता है कि गुणवंत सिंह परिहार की खेड़ी के आसपास सात गांवों की मालगुजारी थी। वे घर के नौकरों से भी शालीनता से बात करते थे। उस वक्त गरीबी का दौर था। उन्होंने कई बार गरीबों को अपने घर से अनाज भी दिया। इस हवेली में प्रति दिन शाम को अवार लगता था। जहाँ गांव के बुजुर्ग बैठक में रहते थे। कई बातों पर चर्चा होती थी।
खेड़ी में वृन्दावन से रासलीला बुलाने का श्रेय मिश्रीलाल अग्रवाल और युवराज सिंह परिहार को जाता है। जिन्होंने रासलीला का मंचन करवाया था। रासलीला को देखने आस पास के दर्जनों गांवों के लोग रासलीला आते थे।
इस हवेली की खासियत यह है कि लगभग सौ वर्ष बाद भी इसकी चमक बरकरार है।हवेली की देखरेख और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी युवराज सिंह परिहार के ज्येष्ठ पुत्र राजसिंह परिहार (पिंटू भैया) ने संभाली है। हवेली में आज भी पुराने समय के ही दरवाजे, खिड़कियां, लकड़ी की गैलरी वगैरह लगे हुए हैं।
अब यहाँ राजसिंह परिहार स्वजनों के साथ बैठक लेते हैं। यहां प्रति वर्ष पोला पर्व के अवसर पर स्वरुचि भोज भी होता है। जहाँ ग्रामीणों को सम्मान पूर्वक भोजन कराया जाता है। परिहार परिवार भले ही अब बैतूल शहर में रहता है, लेकिन उनका मन खेड़ी वासियों की सेवा में लगा रहता है।