
Basmati Variety: देश में चावल की कई किस्में वैसे तो पहले से मौजूद हैं, लेकिन वैज्ञानिक हमेशा नई-नई किस्में लाते रहते हैं। उनकी यही कोशिश रहती हैं कि यह नई किस्में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन दें और बीमारियों का कम से कम असर उन पर हो। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने भी बासमती चावल की कुछ किस्मों को नए तरीके से विकसित किया है।
बासमती चावल की इन नई विकसित किस्मों की यह खासियत है कि इनमें न तो कोई रोग लगेगा और न ही इसके झड़ने की संभावना होगी। इसका मतलब, वातावरण की कैसी भी परिस्थिति हो, किसानों को फसल अच्छी ही मिलेगी। नई किस्म के पौधे काफी छोटे रहते हैं। इससे हवा या बारिश से इसके झड़ने का डर भी नहीं रहता है।
इन नई विकसित की गई किस्मों में पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 शामिल हैं। इनकी पैदावार भी अन्य किस्मों की अपेक्षा बेहतर होती है। साथ ही कृषि विवि ने अपने शोध में बासमती की इन किस्मों को झुलसा रोग से प्रतिरोधक शक्ति वाला बना दिया है। तो आइए जानते हैं बासमती धान की इन नई विकसित किस्मों के बारे में…
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धान की यह हैं नई उन्नत किस्में (Basmati Variety)
पूसा बासमती 1847
बासमती की यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी है। यह जल्दी पकने वाली और अर्ध-बौनी बासमती चावल किस्म है जिसकी औसत उपज 57 क्विंटल (5.7 टन) प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म 2021 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई थी।
पूसा बासमती 1885
यह बासमती चावल की लोकप्रिय किस्म पूसा बासमती 1121 का उन्नत बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी किस्म है। इसका पौधा औसत कद का होता है और इसमें पूसा बासमती 1121 के समान अतिरिक्त लंबे पतले अनाज की गुणवत्ता है। मध्यम अवधि की किस्म है जो 135 दिन में पक जाती है। औसत उपज 46.8 क्विंटल (4.68) टन प्रति हेक्टेयर होती है।
पूसा बासमती 1886
यह पूसा बासमती 6 (1401) का उन्नत रूप है। जो बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगरोधी है। यह 145 दिन में पकती है। औसत उपज 44।9 क्विंटल (4.49 टन) प्रति हेक्टेयर होती है।
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बासमती की इन तीन किस्मों का पहले से है दबदबा (Basmati Variety)
भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती होती है। जिनमें सबसे ज्यादा एरिया पूसा बासमती 1509, 1121 और 1401 का होता है। बासमती के कुल रकबा में इसका हिस्सा करीब 95 परसेंट तक पहुंच जाता है। पूसा ने बासमती 1509 को अपग्रेड करके 1847, 1121 को सुधार कर 1885 और पूसा बासमती-6 (1401) में बदलाव कर पूसा 1886 नाम से रोग रोधी किस्में विकसित कर दी हैं।
औसत पैदावार 44.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है
जानकारी के मुताबिक, वैज्ञानिकों पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 को रोग रोधी के रूप में विकसित किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पूसा बासमती 1847 रोग रोधी है। इसके ऊपर बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट का कुछ भी असर नहीं होगा। यह जल्द ही तैयार हो जाएगी। अगर किसान भाई पूसा बासमती 1847 की खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 57 क्विंटल उपज मिलेगी।
इसी तरह पूसा बासमती 1885 भी रोगरोधी है। यह 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 46.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं, पूसा बासमती 1886 भी बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोग रोधी है। इसकी औसत पैदावार 44.9 क्विंटल पर हेक्टेयर है।
होगी अच्छी पैदावार (Basmati Variety)
बासमती की विकसित की गई इन नई किस्मों को झुलसा रोग का कोई खतरा नहीं होगा। साथ ही इसके पौधे का कद छोटा होने पर इसके झड़ने के संभावना भी कम होगी। नए तरीके से शोध कर बताया गया है कि विकसित की गई बासमती की इस किस्म से अच्छी पैदावार होने की संभावना है, जो प्रदेश के किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगा।