Kele Ki Kheti : केले की खेती से किसानों की बदलेगी तकदीर, इलाज के खर्च भी होंगे कम, जानें खूबियां

Kele Ki Kheti : केले की खेती से किसानों की बदलेगी तकदीर, इलाज के खर्च भी होंगे कम, जानें खूबियां
Kele Ki Kheti : केले की खेती से किसानों की बदलेगी तकदीर, इलाज के खर्च भी होंगे कम, जानें खूबियां

Kele Ki Kheti : “आम के आम और गुठलियों के दाम” यह कहावत तो हमने सुनी थी, लेकिन जल्द ही एक और ऐसी ही कहावत बनने वाली है। यह कहावत “केले के केले और पेड़ के भी दाम” होगी। यह इसलिए क्योंकि केले के फल देने के बाद उसका जो पेड़ केवल कचरा रह जाता है, उसकी भी मांग बेहद बढ़ जाएगी और अच्छी खासी कमाई भी किसानों को इससे होने लगेगी।

यह इसलिए संभव होगा क्योंकि केले के पेड़ से अब घावों पर लगाई जाने वाली ड्रेसिंग बनाई जाएगी। भारत के वैज्ञानिकों ने इसका आविष्कार करने के साथ ही प्रयोग भी कर लिया है। प्रयोग में इसे सफल ही नहीं बल्कि बेहद असरकारक भी पाया गया है। जल्द ही कई कंपनियां इसका उत्पादन शुरू कर देगी और फिर केले के पेड़ भी कमाई का जरिया बन जाएंगे।

विश्व के सबसे बड़े केले की खेती वाले देश भारत में केले के छद्म तने (pseudo stems) प्रचुर मात्रा में हैं, जिन्हें कटाई के बाद फेंक दिया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान (Institute of Advanced Study in Science and Technology -IASST) के वैज्ञानिकों ने केले के छद्म तने, जिसे अक्सर कृषि अपशिष्ट माना जाता है, को घावों के उपचार के लिए पर्यावरण-अनुकूल घाव ड्रेसिंग सामग्री में बदल दिया है।

इस टीम ने किया यह चमत्कार

प्रोफेसर देवाशीष चौधरी और प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) राजलक्ष्मी देवी के नेतृत्व में, आईएएसएसटी-डीकिन यूनिवर्सिटी संयुक्त पीएचडी कार्यक्रम में एक शोध विद्वान मृदुस्मिता बर्मन सहित अनुसंधान टीम ने एक उत्कृष्ट यांत्रिक शक्ति और एंटीऑक्सीडेंट गुणों वाला एक बहुक्रियाशील (मल्टीफंक्शनल) पैच बनाने के लिए केले के रेशों को चिटोसन और ग्वार गम जैसे जैव बहुलकों (बायोपॉलिमर्स) के साथ कुशलतापूर्वक संयोजित किया है।

सभी सामग्रियां हैं पूरी तरह प्राकृतिक

इसे एक कदम और आगे बढ़ाते हुए, शोधकर्ताओं ने विटेक्स नेगुंडो एल. पौधे के सत्व (extract) के साथ इस पैच को लोड किया, जो कृत्रिम परिवेशीय औषधि निकास (in vitro drug release) और जीवाणुरोधी एजेंटों के रूप में पौधे के सत्व-मिश्रित केले के रेशे (fiber) -बायोपॉलीमर मिश्रित पैच की क्षमताओं का प्रदर्शन करता है। इस अभिनव ड्रेसिंग सामग्री को बनाने में उपयोग की जाने वाली सभी सामग्रियां प्राकृतिक और स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं और जो विनिर्माण प्रक्रिया को सरल, लागत प्रभावी और गैर विषैली (non-toxic) बना देती हैं।

किसानों की हो सकेगी अतिरिक्त आमदनी

घाव की ड्रेसिंग सामग्री घाव की देखभाल के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है और प्रचुर मात्रा में केले के पौधे के लिए अतिरिक्त उपयोग का सुझाव देती है। जिससे किसानों को लाभ हो सकता है और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम हो सकता है। इस बारे में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए प्रोफेसर देवाशीष चौधरी devasish@iasst.gov.in से सम्पर्क कर सकते हैं।

इलाज के खर्च में भी आएगी कमी

प्रोफेसर चौधरी कहते हैं कि “यह जांच घाव भरने में एक नए युग का द्वार खोलने के साथ ही कम लागत वाला, विश्वसनीय और पर्यावरण के अनुकूल ऐसा विकल्प प्रस्तुत करती है जो जैव चिकित्सकीय (biomedical) अनुसंधान में महत्वपूर्ण क्षमता रखती है।” केले के फाइबर-बायोपॉलिमर मिश्रित यह ड्रेसिंग अपने व्यापक अनुप्रयोगों एवं स्वास्थ्य और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव के साथ घाव की देखभाल में क्रांति ला सकती है। एल्सेवियर ने हाल ही में इस कार्य को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्युलस में प्रकाशित किया है।

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उत्तम मालवीय

मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट "Betul Update" का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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