Trimbakeshwar Mandir: कालसर्प दोष पूजा का एकमात्र मंदिर, महज 3 घंटे की पूजा से मिलती है मुक्ति

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▪️ लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)

शिव जी स्वंभू माने जाते हैं। महादेव की महिमा अपार है। शिव जी के कई प्रसिद्ध धाम हैं, जिनका सावन में नाम जपने से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है। विश्व प्रसिद्ध भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इन्हीं में से एक है त्र्यंबकेश्वर मंदिर। आइए जानते हैं त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रोचक जानकारी…

महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण मराठा साम्राज्य के पेशवा नानासाहेब ने भव्य तरीके से वर्ष 1755 से 1786 के मध्य में करवाया था। उन्होंने यहाँ विराजित भगवान शिव की प्रतिमा को डायमंड (हीरे) से निर्मित करवाया। दुर्भाग्यवश एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने यहाँ के डायमंड को लूट लिया था।

गोदावरी नदी के तट पर बसे ब्रह्मगिरि पर्वत की तलहटी में बसे नासिक शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर त्रयंबक नगर में स्थित है त्रंयबकेश्वर महादेव। बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर यहां बड़ा कुंभ मेला लगता है और श्रद्धालुजन गौतमी गंगा में स्नान कर भगवान श्री त्र्यंबकेश्वर का दर्शन करते हैं। शिवपुराण में वर्णन हैं कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी और सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।

इस एक मात्र शिवलिंग में है त्रिदेव का वास

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे अद्भुत है और मुख्य बात यह हैं कि इसके तीन मुख (सिर) हैं, जिन्हें एक भगवान ब्रह्मा, एक भगवान विष्णु और एक भगवान रूद्र का रूप माना जाता है। इस लिंग के चारों ओर एक रत्न जड़ित मुकुट रखा गया है, जिसे त्रिदेव के मुखोटे के रुप में माना गया है। इस मुकुट में हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती रत्न लगे हुए हैं। त्र्यंबकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन शाम 4 से 5 बजे तक दर्शनार्थियों को दिखाया जाता है। गोदावरी नदी के किनारे बने त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है।

मंदिर है कुशल कारीगरी का अद्भुत नमूना

भव्य त्र्यंबकेश्वर मंदिर की इमारत, सिंधु आर्यशैली का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर के भीतर एक गर्भगृह है, जिसमें प्रवेश करने के पश्चात् शिवलिंग आंख के समान दिखाई देता हैं, जिसमें जल भरा रहता हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो इसके भीतर एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन तीनों लिंगों को त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अवतार माना जाता है। मंदिर काले पत्थरों से निर्मित किया गया है जो इसकी स्थापत्य कला को एक सुन्दर रूप प्रदान करता है। मंदिर की दीवारों पर सुन्दर नक्काशी बनी हुई है, यह सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिर में चारों तरफ दरवाजे बने हुए हैं जिनमें से पश्चिम की ओर वाला दरवाजा विशेष तीज-त्यौहार के मौकों पर ही खुलता है। वहीं मंदिर की पूर्व दिशा की ओर एक चौकोर मंडप बना हुआ है।

कुशावर्त तीर्थ में स्नान से धूल जाते हैं पाप

पुराणों के अनुसार कुशावर्त तीर्थ में नहाने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है। त्र्यंबकेश्‍वर ज्योतिर्लिंग दर्शन से पहले यहॉं स्‍नान किया जाता है। कुशावर्त तीर्थ गोदावरी नदी का स्‍त्रोत है। कहा जाता है कि ब्रह्मगिरी पर्वत से गोदावरी बार-बार लुप्‍त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गोतम ऋषि ने एक कुशा की मदद से गोदावरी को बंधन में बांध दिया था। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। देश के प्रसिद्ध चार महाकुंभ मेलों मे से एक महा‍कुंंभ मेला प्रत्‍येक बारह वर्ष में यहॉं लगता है। कुंभ स्‍नान के समय सभी शिव अखाड़े यहीं स्‍नान करते हैं। इसी तीर्थस्थल पर गंगा गोदावरी माता का भी मंदिर है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर में होती है कालसर्प पूजा

कालसर्प दोष पूजा के लिए एक मात्र त्र्यंबकेश्वर मंदिर है, जहां यह पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है कि कालसर्प दोष का प्रभाव जातक के जीवन में 49 बरसों तक या कभी-कभी यह जीवन भर भी रहता है। कालसर्प योग दोष पूजा में 3 घंटे तक का समय लग जाता है। कालसर्प पूजा में भगवान शिव के महामृत्युंजय त्र्यंबकेश्वर की पूजा की जाती है। कई लोग देश विदेशों से कालसर्प दोष की शांति के लिए पूजा कराने के लिए त्र्यंबकेश्वर मंदिर में आते हैं।

त्र्यंबकेश्‍वर ज्योतिर्लिंग की कथा

पौराणिक कहानी के अनुसार, प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर ऋषि गौतम उनकी पत्‍नी देवी अहिल्या के साथ रहते थे। कई और ऋषि पत्नियां भी उनके साथ इसी तपोवन में रहती थीं। एक बार सभी ऋषि पत्नियां किसी बात पर देवी अहिल्या से नाराज हो गईं। देवी अहिल्या और ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए सभी ऋषि पत्नियां ने अपने पतियों को प्रेरित किया। अन्य सभी ऋषियों ने भगवान गणेश की कड़ी तपस्या की। सभी ऋषियों की तपस्या से प्रसन्न होकर श्री गणेश ने वर मांगने को कहा।

सभी ने मिलकर ऋषि गौतम को तपोवन से निकालने का वर मांगा। ऋषि गौतम को तपोवन से निकालने की बात के लिए गणेश जी तैयार नहीं हो रहे थे, लेकिन गणेश जी को सभी के आग्रह को मानना ही पड़ा। गणेश जी एक दुर्बल गाय का रूप रख कर ऋषि गौतम के खेत में चरने लगे। ऋषि गौतम ने जैसे ही गाय को देखा और उन्होंने पतली छड़ी से उसे मारकर भगाना चाहा, तो वह गाय वहीं गिरकर मर गई। तब गौतम ऋषि पर अन्‍य सभी ऋषियों ने गौहत्या का आरोप लगाया और उन्‍हें तपोवन छोड़कर जाने को कहा।

गौतम ऋषि को देवी अहिल्या के साथ सभी ऋषियों के कहने पर आश्रम को छोड़ कर जाना पड़ा। इसके बाद भी सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि का किसी जगह रहना कठिन बना दिया। सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि से कहा कि इस गो हत्या के पाप से प्रायश्चित हेतु ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी गंगा को लाना होगा। तब गौतम ऋषि ने सभी की बात को मानते हुए शिवलिंग को स्थापित कर उसकी पूजा शुरू कर दी।

गौतम ऋषि की भक्ति और कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी और माता पार्वती प्रकट हुए और भगवान शिव ने गौतम ऋषि को उनकी इच्छा अनुसार वरदान मांगने को कहा। तब शिव जी की बात सुनकर ऋषि गौतम ने देवी गंगा को ब्रह्मगिरी पर्वत पर आने का वरदान मांगा। देवी गंगा ने कहा कि मैं यहां तभी रहूंगी, जब शिवजी भी इस स्थान पर रहेंगे, तब गंगा के ऐसा कहने पर वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप शिवजी वास करने को तैयार हो गए और गौतमी के रूप में वहां गंगा नदी बहने लगी। गौतमी नदी को गोदवरी भी कहा जाता है।

ऐसे करें त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन

नासिक से सड़क मार्ग से 40 किमी की दूरी पर स्थित मंदिर औरंगाबाद एवं मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से नजदीक पड़ता है। नासिक रेलवे स्टेशन मुंबई रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। देश भर से पहुंचने के लिए ट्रेन उपलब्ध है। नासिक से त्र्यंबकेश्वर मंदिर पहुंचने के लिए एक घन्टे का समय लगता है जहां बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। मंदिर के मुख्‍य द्वार पर पहुँच जाएंगे तो उत्तर द्वार टिकट काउन्‍टर बना है। आप यहाँ से 200 रुपये में टिकट लेकर वीआईपी दर्शन आधे घंटे में कर सकते हैं। अगर आप वीआईपी दर्शन न करके फ्री दर्शन करते हैं तो इसके लिए आपको पूर्वी द्वार से लाइन में लगना होगा।

त्र्यंबकेश्‍वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन करने के लिए भक्‍तों की बहुत भीड़ होती है और भक्‍तों की लम्‍बी लाइन लगती है, जिससे दर्शन करने में काफी समय लग जाता है। दर्शन के लिए लाइन में लगे रहते हुए आप शिवजी को याद करते हुए ओम नम: शिवाय का जाप करते जाएं। जैसे–जैसे लाइन बढ़ते जाएगी, आप मंदिर के अंदर के हिस्‍से में पहुँचेंगे। आप पहले नंदी मंडप में पहुँचेंगे और यहॉं आप नंंदी भगवान के दर्शन करेंगे। नंदी भगवान के दर्शन करने के बाद मंदिर के मुख्‍य द्वार पर पहुंच जाएंगे। प्रवेश द्वार पहुँचने के बाद आगे चलते हुए 3-4 फीट नीचे गर्भग्रह है। गर्भग्रह के बाहर से ही आपको दर्शन करना होगा।

त्र्यंबकेश्‍वर ज्योतिर्लिंग में रुकने की जगह

अगर आप त्र्यंबकेश्‍वर में ठहरने की सोच रहे हैं या रात को ठहरने के लिए कोई अच्छा सा कमरा तलाश रहे हैं तो यहां आप श्री त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर ट्रस्ट के शिव प्रसाद भक्त निवास में बहुत कम कीमत पर कमरा ले सकते हैं। बस स्टैंड के पास ही में शिव प्रसाद भक्त निवास त्र्यंबकेश्‍वर स्थित है। सावन मास की भीड़ के कारण शिव प्रसाद भक्त निवास में अगर रुकने की व्‍यवस्‍था नहीं हो पाती तो उसके विकल्प के तौर पर श्री त्र्यंबकेश्‍वर शहर में प्रवेश करने से पहले ही श्री गजानन महाराज के भक्त निवास में भी पहुंच कर तलाश कर लेनी चाहिए। यहां आपको कमरा बहुत आसानी से मिल सकता है। श्री गजानन महाराज भक्त निवास में स्‍वच्‍छता का ध्‍यान रखा जाता है जिससे यहां की स्वच्छता, सुंदरता और यहां का शांत वातावरण सभी श्रद्धालओं का मन मोह लेती है। इसलिए श्री गजानन महाराज भक्त निवास में अधिकतर यात्री सबसे पहले ही यहीं ठहरना पसंद करते हैं।

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