Bhooto Ka Mela: यहां लगता है भूतों का मेला, आज से होगी शुरुआत, यहां के बारे में जानकर हो जाएंगे आप हैरान
Bhooto Ka Mela : ‘भूतों’ का मेला… यह पढ़कर आप शायद चौक गए होंगे या फिर यकीन नहीं कर पा रहे होंगे। लेकिन यह बात सही है कि मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में वाकई भूतों का मेला लगता है। यह मेला जिले के चिचोली नगर से 7 किलोमीटर दूर स्थित मलाजपुर गांव में श्री गुरु साहब बाबा के मंदिर में लगता है। दरअसल, यह पवित्र स्थान प्रेत बाधाओं से मुक्ति के लिए मशहूर है। इसलिए यहां हर साल लगने वाले मेले में बड़ी संख्या में प्रेत बाधा से पीड़ित लोग भी पहुंचते हैं। इसलिए इसे ‘भूतों’ का मेला भी कहा जाता है।
यहां के पूज्यपाद महंत चन्द्रसिंह महाराज जी के आदेशानुसार प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले ऐतिहासिक मेले का आयोजन इस वर्ष पौष माह पूर्णिमा पर 6 जनवरी शुक्रवार को प्रारंभ होगा। समाधि स्थल पर ध्वज (निशान) अर्पित कर मेले का शुभारंभ किया जाएगा। इस मेले में देश के अनेक प्रांतों एवं विदेश से भी श्रद्धालु दर्शन लाभ एवं अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु शामिल होंगे। (Bhooto Ka Mela)
यह ऐतिहासिक मेला लगभग 354 वर्षों से निरंतर ग्राम मलाजपुर की पावन धरा पर आयोजित किया जा रहा है। मेले का समापन बसंत पंचमी पर 26 जनवरी दिन गुरुवार को संध्या आरती और कड़ाही प्रसादी वितरण के साथ होगा। सभी भक्तों से सहपरिवार मेले में पहुंचने की अपील की गई है।
मत्था टिकाते ही मिल जाती प्रेत बाधा से मुक्ति (Bhooto Ka Mela)
मान्यता है कि श्री गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल पर प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति को ले जाकर मत्था टिकाने पर वह प्रेत बाधा से मुक्त हो जाता है। सालों से यह चमत्कार लोग अपनी आंखों से देखते आए हैं। यही कारण है कि प्रेत बाधाओं से मुक्ति पाने वाले लोगों की मेले की प्रथम रात्रि से ही भारी भीड़ लगी रहती है।
हर साल लगने वाले मेले का शुरु दिन भूतों का दिन माना जाता है। मेले के प्रथम दिन पूस मास की पूर्णिमा को पूरे दिन व रात भर समाधि परिसर की परिक्रमा करते हजारों की संख्या में भूत-प्रेत बाधाओं से पीड़ित लोगों को देखा जा सकता है। कभी वे किलकारी मारते तो कभी तरह-तरह की आवाजें निकालते और भागते-दौड़ते परिसर की परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं।
इस तरह से दूर होती है प्रेत बाधा
मलाजपुर के पूर्वी छोर पर लगभग 2 किमी की दूरी पर बंधाराघाट नामक पवित्र स्थल है। प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को मलाजपुर लाने के बाद पहले सीधे यहां ले जाया जाता है। पूजा-पाठ कर यहां के जल से स्नान कराया जाता है। प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति जैसे ही बंधाराघाट में स्नान करता है उसके शरीर में समाया भूत-प्रेत अपना रंग दिखाना और बड़बड़ाना शुरु कर देता है।
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पीड़ित व्यक्ति को फिर यहां से सीधे गुरुसाहब बाबा के दरबार मलाजपुर लाकर समाधि स्थल के समक्ष खड़ाकर उसकी झाड़ फूंक कर पानी और झाडू उतारी जाती है। इसके बाद उसे पकड़कर दरबार की परिक्रमा करवाई जाती है। पुनः उसे समाधि स्थल लाकर उसी के मुंह से इसके बारे में उगलवाया जाता है। फिर प्रेत को कसम खिलवाकर व्यक्ति से मुक्ति दिलवाई जाती है। यह नजारा दरबार में प्रत्यक्ष दिखता है।
दरबार के बारे में यह हैं मान्यताएं (Bhooto Ka Mela)
मलाजपुर के पवित्र गुरुसाहब बाबा के दरबार पर मत्था टेकने और मन्नतें मांगने के बाद मन्नतें जरूर पूरी होती हैं। इसके बाद यहां गुड़ से उनका तुलादान किया जाता है। निःसंतान दंपत्तियों के बाबा के दरबार में आकर मत्था टेकने और अर्जी लगाने व नियम-संयम का पालन करने पर उन्हें संतान प्राप्त होती है। इसी तरह विषैला सर्प किसी व्यक्ति को काटे और वह मलाजपुर गुरु साहब बाबा के दरबार में पहुंचकर मत्था टेके और चरणामृत को सेवन कर यहां का रक्खन बंधवाएं व झाड़ फूंक करवा लें तो जहर उतर जाता है और व्यक्ति ठीक हो जाता है।
गुड़ का अंबार पर चींटी एक नहीं
साल भर गुरुसाहब बाबा की समाधि पर गुड़ चढ़ाने हेतु हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भारी मात्रा में यहां तुलादान व चढ़ोतरी स्वरूप गुड़ व शक्कर चढ़ाया जाता है। इसके बावजूद पूरे समाधि परिसर में मक्खी व चीटियां नहीं पाई जाती। इसे बाबा का ही चमत्कार माना जाता है।
बाबा ने किशोर अवस्था में ही ले ली थी समाधि
गुरुसाहब बाबा ने मलाजपुर में सन् 1770 में किशोर अवस्था में जीवित समाधि ले ली थी। तब से यहां हर साल विशाल मेला पूस मास की पूर्णिमा से बसंत पंचमी तक लगता है। संपूर्ण दरबार व समाधि की देखरेख हेतु पांच महंत क्रमशः गप्पा, परमसुख, मूरतसिंह, नीलकंठ और वर्तमान में महंत चंद्रसिंह हैं। आज तक मेले में कभी चोरी-डकैती की घटनाएं नहीं हुईं। यहां पर जिले का सबसे बड़ा मेला भी लगता है। केवल जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश और देश भर से यहां श्रद्धालु आते हैं।
कब-कब चढ़ता है निशान
गुरुसाहब बाबा की समाधि स्थल पर निर्मित मंदिर पर साल में अगहन मास की पूर्णिमा एवं बैसाख मास की पूर्णिमा पर दो बार निशान चढ़ाया जाता है। समाधि स्थल मंदिर पर चढ़ाए जाने वाले निशान के लिए सवा पांच मीटर सफेद खादी के कपड़े को पहले धोया जाता है फिर इसे सूखाकर हाथों के द्वारा सिलाई कर निशान बनाया जाता है।
गुरुसाहब बाबा की समाधि स्थल से मुख्य द्वार पर दाहिनी ओर निर्मित चबूतरे पर लगे 35 फीट ऊंचे ध्वज स्तंभ पर प्रतिवर्ष दशहरे के दिन चढ़ने वाला सफेद खादी के 22 मीटर कपड़े से 35 हाथ लंबा हाथों से सिलकर बनाया गया निशान विधिवत् पूजा-अर्चना कर चढ़ाया जाता है।