नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन : साल में एक बार नागपंचमी पर सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है यह मंदिर, यहां दर्शन से मिलती है सभी सर्प दोषों से मुक्ति
• लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
Nagchandreshwar Temple Ujjain : भारत धार्मिक आस्था वाला देश हैं। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। कुछ ऐसे स्थान भी हैं जिनकी परंपराएं और विशिष्टता आश्चर्यचकित करती हैं। ऐसा ही एक प्रमुख धार्मिक स्थल है उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर। इस मंदिर की विशेषता है कि यह वर्ष में केवल एक दिन ही खुलता है। यह शुभ और विशेष दिन होता है नागपंचमी (nagpanchami) पर्व का।
नागपंचमी श्रावण मास में पड़ने वाला एक प्रमुख पर्व है। नागपंचमी सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन मनाया जाता है। इस बार नागपंचमी 2 अगस्त, मंगलवार को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में नाग देवता की पूजा करने की परंपरा सदियों से रही है। इस धर्म में आस्था रखने वाले लोग सांपों को भगवान का आभूषण मानते हैं।
हमारे देश में नागों के कई मशहूर मंदिर भी हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर है। उज्जैन के महाकाल मंदिर (Mahakal Temple) के तीसरी मंजिल पर ही नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे सिर्फ नागपंचमी के दिन वर्ष में एक बार दर्शन के लिए खोला जाता है।
श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर नाग पंचमी पर सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है। उज्जैन में श्री महाकालेश्वर मंदिर के तृतीय तल के शिखर में विराजमान बाबा नागचंद्रेश्वर मंदिर में जाने के लिए इस वर्ष अस्थाई पैदल ब्रिज श्रद्धालुओं को 1 अगस्त सोमवार रात 12 बजे से 2 अगस्त की रात 12 तक खोल दिये जायँगे ।
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मंदिर में मौजूद हैं नागराज तक्षक
मान्यताओं के अनुसार, नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में मौजूद हैं। इस वजह से केवल नागपंचमी के दिन मंदिर को खोलकर नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही कई मायनों में नागचंद्रेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए खास है। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की प्रतिमा मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि ऐसी प्रतिमा दुनिया में और कहीं नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था।
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शय्या पर विराजमान हैं नागदेवता
नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु की जगह शंकर भगवान सांप की शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी।
वरदान के रूप में दिया था अमरत्व
सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग (king of snakes takshak) को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन, महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।
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राजा भोज ने कराया था निर्माण
इस प्राचीन मंदिर का निर्माण राजा भोज (raja bhoj) ने 1050 ई. के आसपास कराया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया (Maharaj Ranoji Scindia) ने साल 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की यह लालसा होती है कि नागराज पर विराजे भगवान शंकर का एक बार दर्शन हो जाए। नागपंचमी के दिन यहां लाखों भक्त आते हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन, महाँकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।
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यहां दर्शन से मिलती है सभी सर्प दोष से मुक्ति
इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।
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