Wheat rate : निर्यात पर प्रतिबंध के बाद औंधे मुंह गिरे गेहूं के दाम, कभी समर्थन मूल्य से ज्यादा था न्यूनतम रेट, अब अधिकतम भी हो गया कम

• उत्तम मालवीय, बैतूल
Wheat rate : गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगते ही गेहूं के दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। कुछ समय पहले तक मंडियों में इसके न्यूनतम मूल्य भी समर्थन मूल्य से काफी अधिक चल रहे थे। इसके विपरीत अब हाल यह है कि गेहूं के अधिकतम मूल्य भी समर्थन मूल्य (support price) से काफी कम हो गए हैं। इसके बावजूद भी सरकारी खरीदी केंद्रों पर किसान नहीं पहुंच रहे हैं। उन्हें अभी भी उम्मीद है कि निर्यात से प्रतिबंध (ban on export) हटेगा और दामों में इजाफा होगा। हालांकि किसान मंडी में लगातार दामों में आ रही गिरावट के कारण चिंतित होने लगे हैं।

समर्थन मूल्य से अधिक दाम मंडी और खुले बाजार में मिलने से अधिकांश किसानों ने उपज नहीं बेची थी। किसान दाम और बढ़ने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन अचानक निर्यात पर रोक से दामों में कमी आने लगी। पिछले पांच दिन में ही मंडी में 200 से 250 रुपये से अधिक की कमी आ गई है। 13 मई को कृषि उपज मंडी बडोरा में गेहूं का न्यूनतम मूल्य 2030 रुपये प्रति क्विंटल था और अधिकतम दाम 2136 रुपये प्रति क्विंटल थे। किसानों को उम्मीद थी कि मई के अंत तक दाम बढ़कर 2200 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हो जाएंगे। इस बीच अचानक सरकार ने निर्यात पर रोक लगाने का आदेश दे दिया।

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इसके बाद जब 20 मई को मंडी में खरीदी शुरू हुई तो न्यूनतम दाम लुढ़ककर 1850 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गए। अधिकतम दाम भी घटकर 2086 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। एक दिन बाद 21 मई को दाम और कम हो गए। शनिवार को गेहूं की न्यूनतम बोली 1300 रुपये प्रति क्विंटल लगाई गई और अधिकतम बोली 2041 रुपये तक ही लगाई गई। मंगलवार को हालत और भी खराब रहे क्योंकि न्यूनतम बोली 1800 रुपये और अधिकतम बोली 2002 रुपये लगी। यह समर्थन मूल्य 2015 से भी काफी कम रहे। मात्र सात दिन में ही गेहूं का न्यूनतम मूल्य 250 रुपये प्रति क्विंटल से भी ज्यादा कम हो गया है। स्थानीय व्यापारी इसके पीछे सरकार की नीति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

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मंडी के व्यापारी प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि सरकार ने नोट बंदी की तरह गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया था। इससे गेहूं के सौदे जो अधिक दाम पर हो गए थे, उन्हें निरस्त करने की स्थिति बन गई थी। जिन व्यापारियों ने गेहूं खरीदकर बाहर भेजने के लिए गोदामों में रख दिया है। उन्हें अचानक दाम कम होने से आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है। जिन किसानों को उम्मीद थी कि मानसून आने से पहले अच्छे दाम मिल जाएंगे वे लगातार घटती कीमतों के कारण चिंतित हो रहे हैं।

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किसान ब्रजेश पटेल ने बताया कि मंडी में दाम अधिक मिलने के कारण गेहूं खलिहान में ही रख दिया है। उम्मीद थी कि बारिश से पहले दाम बढ़ जाएंगे और सीधे खलिहान से उपज मंडी ले जाकर बेच देंगे। अब तो मंडी में ही दाम घट कर समर्थन मूल्य से कम हो गए हैं। ऐसे में खलिहान से उपज उठाकर गोदाम में सुरक्षित रखना पड़ेगा। जिससे लागत अधिक लगेगी।

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फिर भी खरीदी केंद्रों पर छाया है सन्नाटा

मंडी में गेहूं के दामों में बेतहाशा कमी के बावजूद किसान समर्थन मूल्य पर गेहूं नहीं बेच रहे हैं। अभी भी खरीदी केंद्रों पर सन्नाटा ही छाया है। किसानों को अभी भी दाम बढ़ने की आस है। अभी तक जिले में 800 किसानों ने मात्र 3464.71 मीट्रिक टन गेहूं की बिक्री ही की है। इसके विपरीत पहले जिले का लक्ष्य 2 लाख मीट्रिक टन था। खरीदी की धीमी रफ्तार के चलते लक्ष्य कम करके 45 हजार मीट्रिक टन किया गया। इसके बावजूद लगता नहीं कि खरीदी का आंकड़ा इसके आसपास भी पहुंच सकेगा।

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अभी तक इतना गेहूं जा चुका है बाहर

अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ने के कारण जिले से अब तक रेलवे की 13 रैक से तीन लाख 80 हजार क्विंटल गेहूं देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जा चुका है। अधिकांश गेहू बंदरगाह से विदेशों में भी गया है। रेलवे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस सीजन में बैतूल से गेहूं की 13 रैक भरकर जा चुकी है। जिससे 8 रैक बैतूल से और पांच रैक मरामझिरी स्टेशन से भरी जा चुकी है। मालगाड़ियों से ही अभी तक 3 लाख 80 हजार क्विंटल गेहूं प्रदेश के बाहर कांदला गुजरात, रूद्रपुर और दक्षिण भारत के शहरों में जा चुका है। इसके अतिरिक्त व्यापारियों द्वारा ट्रकों में भर कर भी बड़ी मात्रा में गेहूं बाहर भेजा गया है। जिले में स्थित फ्लोर मिल संचालकों द्वारा भी मंडी से बड़ी मात्रा में गेहूं की खरीदी की गई।

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