• लोकेश वर्मा, मलकापुर (बैतूल)
कहते हैं कि जब समुद्र मंथन चल रहा था तब मंथन के दौरान 14 रत्न निकले, जिनमे एक थे धन्वंतरि। मान्यता है कि, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता वैद्यक शास्त्र के देवता भगवान धन्वंतरि आरोग्य सेहत आयु और तीज के आराध्य देव हैं। उन्होंने विश्व भर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया।
धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। आज का दिवस आरोग्य के लिए होता है, स्वास्थ के लिए होता है, जीवन को निरोगी रख दीर्घायु जीने के लिए होता है।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत भी है, कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। जिसको अब धन से जोड़कर धनतेरस मनाया जाता है। धन क्या है? वास्तविक कमाई तो स्वास्थ है, ऐसे में तो नाम स्वास्थ्य तेरस, आरोग्य तेरस होना चाहिए। इसलिए आज के शुभ दिन पर संकल्प लें स्वस्थ रहने का, निरोगी होने का, अपनी दिनचर्या को सुधारने का।
हमारे देश में एल्युमिनियम के बर्तनों के जनक अंग्रेज माने जाते हैं। उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी के बर्तन ही चला करते थे और बाकी मिट्टी के बर्तन चलते थे। हमारे पूर्वजों ने कभी भी एल्युनिनियम के बर्तनों का प्रयोग नहीं किया। अंग्रेजों ने जेलों में कैदियों के लिए एल्यूमिनियम के बर्तन शुरू किए, क्योंकि उसमें से धीरे-धीरे जहर हमारे शरीर में जाता है । एल्युमिनियम के बर्तन के उपयोग से कई तरह के गंभीर रोग होते हैं। जैसे अस्थमा, वात रोग, टी बी, शुगर, दमा आदि।
पुराने समय में काँसा और पीतल के बर्तन होते थे जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं। यदि सम्भव हो तो वही बर्तन फिर से ले कर आयें। हमारे पुराने वैज्ञानिकों को मालूम था की एल्युमिनियम बाक्साईट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदाने हैं। फिर भी उन्होंने एल्युमिनियम के बर्तन नहीं बनाये क्योंकि यह भोजन बनाने और खाना खाने के लिए सबसे घटिया धातु है। इससे अस्थमा, टीबी, दमा, वातरोग में बढावा मिलता है। इसलिए एल्युमिनियम के बर्तनों का उपयोग बन्द करें।
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कुछ लोग कहेंगे कि हम तो कई साल से इसमें खा रहे हैं। इसका melting point ज्यादा है वगैरह वगैरह। तो उनके लिए जवाब है कि हमारे पुराने वैज्ञानिकों (पूर्वजों) को मालूम था कि एल्युमिनियम बाक्साईट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदानें हैं, फिर भी उन्होंने एल्युमिनियम के बर्तन नहीं बनाये क्योंकि उनको यह पता था कि यह भोजन बनाने और खाना खाने के लिए सबसे घटिया धातु है।
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एलुमिनियम को बंद करके पीतल, कांसा तथा मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग कीजिए। स्टील के बर्तन एल्युमिनियम से कम हानि करते हैं। अगर आपको अपने स्वास्थ्य की चिन्ता है तो इस दीवाली पर एल्युमिनियम के बर्तनों को बाय-बाय करके पीतल, कांसे तथा मिट्टी के बर्तन ही प्रयोग करें। क्योंकि स्वस्थ शरीर ही असली धन है।